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प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं आपवादिक विधियाँ ...225 शब्द विशिष्ट रीति से इस प्रकार बोले जाते हैंअ-आसन पर स्थापित रजोहरण, (चरवले) अथवा मुँहपत्ति को दोनों हाथों की
दसों अंगुलियों से स्पर्श करते हुए बोला जाता है। हो-दसों अंगुलियों से ललाट को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। का-चरवले आदि को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। यं-ललाट को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। का-चरवले आदि को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। य-ललाट को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। ज-अनुदात्त स्वर से बोला जाता है और उसी समय गुरुचरण की स्थापना को
दोनों हाथों से स्पर्श किया जाता है। त्ता-स्वरित स्वर से बोला जाता है और उस समय चरण स्थापना से उठाये हुए
हाथ चरवले और ललाट के बीच में चौड़े करने में आते हैं। भे-उदात्त स्वर से बोला जाता है और उस समय दृष्टि गुरु के समक्ष रख कर
दोनों हाथ ललाट पर लगाये जाते हैं। ज-अनुदात्तस्वर से चरणस्थापना को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। व-स्वरित स्वर से मध्य में आते हुए हाथ चौड़े करके बोला जाता है। णि-उदात्त स्वर से ललाट को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। ज्जं-अनुदात्त स्वर से चरणस्थापना को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। च-स्वरित स्वर से मध्य में आते हुए हाथ चौड़े करके बोला जाता है। भे-उदात्त स्वर से ललाट को स्पर्श करते हुए बोला जाता है। 10-12. 'जत्ताभे जवणि ज्जं च भे ये तीन पद बोलना - तीन आवश्यक। 13-15. दूसरी बार के वन्दन में भी यही तीन पद बोलने से - तीन आवश्यक। 16-17. 'काय संफासं' पद बोलकर करबद्ध हाथों को मुँहपत्ति पर स्थापित
करते हुए उस पर मस्तक लगाना- यह एक आवश्यक। दूसरी बार के
वांदणा में भी इसी तरह करने से- एक आवश्यक। 18-21. 'खामेमि खमासमणो' - यह पद बोलते हुए पुन: मस्तक झुकाना ऐसे
दो आवश्यक। इसी तरह दूसरी बार के वांदणा के दो मिलाने से- कुल
चार आवश्यक। 22. 'आवस्सिआए' यह पद कहते हुए अवग्रह से बाहर निकलना। दूसरी