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प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं आपवादिक विधियाँ ... 221
मस्तक को अन्त तक झुकाना चाहिए। जिसके हाथ में चरवला हो उन्हें हर एक खमासमण खड़े होकर ही देना चाहिए जिससे क्रिया के प्रति आदर - बहुमान जागृत हो। इससे क्रिया का पूर्ण फल प्राप्त होता है। जो लोग बैठे-बैठे क्रिया करते हैं उन्हें अपना मस्तक पूरी तरह जमीन तक झुकाना चाहिए। अधिकतर लोग माथा नमाते ही नहीं है, कुछ आधा सिर झुकाते हैं तो कुछ आधा शरीर ही नमाकर रह जाते हैं, परन्तु ऐसा नहीं करना चाहिए। विधि हमेशा पूरी होनी चाहिए ।
20. शिष्य और श्रावक गुरु से साढ़े तीन हाथ दूर रहकर क्रिया करें तथा साध्वी और श्राविका मोह प्रसंग निवारण करने के लिये साधु अथवा श्रावक से तेरह हाथ दूर रहकर क्रिया करें। इसी प्रकार साध्वी से अन्य साध्वियों एवं श्राविकाओं को बहुमानार्थ साढ़े तीन हाथ तथा साध्वी से साधु एवं श्रावक को मोह प्रसंग निवारणार्थ तेरह हाथ दूर रहना चाहिए। यह उत्कृष्ट अवग्रह है।
21. शुद्धिपूर्वक की गई क्रिया अत्यन्त फलदायक होती है इसलिये सामायिक प्रतिक्रमण करने वाले साधकों को शरीर, वस्त्र और उपकरण की शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए।
22. सामायिक-प्रतिक्रमण के लिए कटासन बिछाने से पूर्व चरवले से भूमि का प्रमार्जन करना चाहिए।
23. साधु और श्रावक को प्रात: और सायं नियमित प्रतिक्रमण करना चाहिए। जो गृहस्थ व्रतधारी न हो उसको भी प्रतिक्रमण करना चाहिए,क्योंकि वह तृतीय वैद्य की औषधि के समान अत्यन्त हितकारी है। एक राजा के पास तीन वैद्य आये। उनमें पहले वैद्य के पास ऐसा रसायन था कि जिसके सेवन से व्याधि हो तो मिट जाए और नहीं हो तो नया रोग उत्पन्न कर दे। दूसरे वैद्य के पास ऐसी औषधि थी कि जिसके प्रयोग से व्याधि हो तो मिट जाए और न हो तो नया रोग उत्पन्न नहीं करे। तीसरे वैद्य के पास ऐसी औषधि थी कि जिससे व्याधि हो तो मिट जाए और न हो तो सर्व अंगों को परिपुष्टि कर भविष्य में होने वाले रोगों को भी ठीक कर दें। इसी तरह प्रतिक्रमण भी दोष लगें तो उनकी शुद्धि करता है और न लगें तो चारित्र धर्म का पोषण करता है।