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220... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 12. प्रतिक्रमण एक व्यक्ति बोले तथा दूसरे उसके सूत्रों को लक्ष्य में रखकर
सुनें अथवा मन में पढ़ें और चिंतन-मनन करें। ऐसा करने से अर्थ की
चिंतना बराबर हो सकती है और उपयोग भी रह सकता है। 13. कायोत्सर्ग करते समय नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि रखनी चाहिए, यदि
ऐसा न हो सके तो स्थापनाचार्य पर रखनी चाहिए। 14. प्रतिक्रमण करते समय दृष्टि स्थापनाचार्य पर रखनी चाहिए। दृष्टि को
अस्थिर रखने से अथवा अन्यचित्त से प्रतिक्रमण करने पर अविधि दोष लगता है तथा कृत क्रिया निष्फल हो जाती है। इसलिए उपयोग पूर्वक
प्रतिक्रमण करना चाहिए। 15. प्रतिक्रमण करते समय आवश्यकता के बिना आसन पर बैठना नहीं
चाहिए। जहाँ तक बन पड़े वहाँ तक कायोत्सर्ग, वन्दन आदि सभी आवश्यक यतना पूर्वक खड़े-खड़े करने चाहिए। यदि शरीर में बेचैनी हो तो ही बैठे-बैठे करना चाहिए। प्रतिक्रमण की स्थापना के बाद छह आवश्यक क्रिया खड़े होकर की जाती है। केवल वंदित्तु सूत्र तथा छह आवश्यक से पहले और पीछे की जाने वाली क्रिया में नीचे बैठते हैं। खड़े होकर ध्यान करने वालों को चरवला दाएँ हाथ में और मुँहपत्ति बाएं हाथ में घुटने की तरफ झुकाकर रखनी चाहिए। दोनों पैरों के मध्य आगे के भाग में चार अंगुल का और पीछे की तरफ चार अंगुल से थोड़ा कम
अन्तर रखना चाहिए। 16. कायोत्सर्ग में गिनती के लिए अंगुलियों के पौरवों का उपयोग नहीं करना
चाहिए। इसके लिए हृदय में नौ खण्ड युक्त अष्टदल कमल की कल्पना करके उन पर संख्या की धारणा की जाती है। अधिक जानकारी के लिये
चित्रों के साथ उनका वर्णन भी देख लेना चाहिए। 17. यदि मच्छर आदि का उपद्रव हो तो शरीर को बार-बार हिलाये नहीं, उसे - सहन करना चाहिए। संवत्सरी प्रतिक्रमण के 40 लोगस्स के कायोत्सर्ग में
छींक नहीं आनी चाहिए। 18. कायोत्सर्ग पूर्ण करने के बाद यदि दूसरे लोग काउस्सग्ग कर रहे हों तो
समता पूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। 19. खमासमण आधा नहीं देना चाहिए। क्योंकि यह क्रिया पंचांग प्रणिपात
पूर्वक होती है, इसमें शरीर के पाँचों अंग भूमि तक छूने चाहिए, इसलिये