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अध्याय-6 प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं
आपवादिक विधियाँ
षडावश्यक साधना में प्रतिक्रमण यद्यपि मात्र चतुर्थ आवश्यक रूप है परंतु वर्तमान में यह षडावश्यक का यथार्थ बन चुका है। जैन श्रमण एवं गृहस्थ दोनों के लिए ही यह एक मुख्य दैनिक आचार है। जिस प्रकार School, Office या घर के दैनिक कार्य करते हुए अनेक प्रकार की सावधानियाँ रखी जाती है तथा तत्सम्बन्धी मर्यादाओं एवं नियमों का भी पालन किया जाता है। सर्दी हो या बरसात Time पर आवश्यक सामग्री के साथ हम वहाँ पहुँच जाते हैं वैसे ही षडावश्यक रूपी मोक्ष साधक क्रिया की आराधना भी पूर्ण जागरूकता एवं सावधानी के साथ की जा सके इसलिए प्रतिक्रमण सम्बन्धी नियमों को जानना परमावश्यक है।
प्रतिक्रमण विधि के आवश्यक नियम 1. सिनेमा, मेच या सरकस देखने के लिए जाना हो तो उसकी तैयारी कुछ
दिनों या घंटों पूर्व हो जाती है जैसे कि टिकट खरीदना, देखने का उमंग होना, मित्रों में उसकी चर्चा करना आदि। प्रतिक्रमण एक महान योग है, कृत पापों के प्रायश्चित्त का मार्ग है इसलिए इसकी पूर्व तैयारी के रूप में मोह छेद के लिए, पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए, कर्मभार से मुक्त
होने के लिए जा रहा हूँ ऐसा मनोभाव जागृत कर प्रतिक्रमण करना चाहिए। 2. सामायिक-प्रतिक्रमण समुदाय के साथ बैठकर किया जाता हो, तब अपने
. से बड़ों का यथोचित विनय और शिष्टता का पालन करना चाहिए। 3. सूत्र संहिता पूर्वक बोलना चाहिए और उस समय अर्थ का भी ध्यान
रखना चाहिए। 4. जहाँ जैसी मुद्राएँ करने के लिए कहा गया हो वहाँ उस प्रकार की मुद्राएँ
करना चाहिए। 5. प्रतिक्रमण विधि के हेतुओं को बराबर समझकर एवं उनके अनुसार लक्ष्य
रखकर वर्तन करने का प्रयत्न करना चाहिए।