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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...213 आवश्यकता है। इसी के साथ आलोचना के माध्यम से अन्तर भूमि को दोष रहित और पोली करने का प्रयास किया जाता है। जिस प्रकार रणभूमि में योद्धा शस्त्र को उठाकर चलता है और उस बाह्य मुद्रा से ही उसमें विजय भावना उत्तरोत्तर पनपती है, ठीक उसी प्रकार रजोहरण को कंधे के समीप उठाकर धारण करने से ही कषाय शत्रुओं को पराजित करने की भावना बलवती बनती है। रजोहरण जो कि अभयदान एवं जीव रक्षा का प्रेरक है, उसके आलम्बन से साधु स्वयं का क्रोध आदि वैभाविक दुर्गुणों से रक्षण करता है तथा उनसे छुटकारा पाने हेतु प्रयत्न भी करता है। शंका- गृहस्थ के लिए दैवसिक अतिचारों का अवधारण करने हेतु पंचाचार की आठ गाथाओं के चिंतन का निर्देश है, वे गाथाएँ कौनसी और किस सूत्र में कही गई हैं? समाधान- दशवैकालिक नियुक्ति (181, 184, 182, 185, 186, 47, 48, 187) के अनुसार पंचाचार की गाथाएँ निम्नोक्त है नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरणम्मि तवम्मि तह य वीरियम्मि । आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ।।1।। काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे । वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्ठविहो नाण मायारो ।।2।। निस्संकिय निक्कंखिअ, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह-थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ।।3।। पणिहाण जोग-जुत्तो, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्वो।।4।। बारसविहम्मि वि तवे, सब्मिंतर-बाहिरे कुसल-दिट्टे । अगिलाइ अणाजीवी, नायव्वो सो तवायारो ।।5।। अणसणमूणोअरिआ, वित्ती संखेवणं रस च्चाओ। काय-किलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ ।।6।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ झाणं उस्सग्गो विअ, अग्भिंतरओ तवो होइ ।।7।। अणिगूहिअ बल वीरिओ,परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो। जुंजइ अ जहाथामं, नायव्वो वीरिआयारो ।।8।।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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