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214... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
शंका- सामायिक आवश्यक को पूर्ण करते समय सूत्रपाठ बोलने की आवश्यकता क्या है?
समाधान- जैसे दो तटों के बीच बहने वाला पानी नदी कहलाता है और दोनों तट ही उसके अस्तित्व एवं उपयोगिता को प्रमाणित करते हैं वैसे ही सामायिक लेने रूप प्रथम तट के साथ उसका दूसरा किनारा सामायिक पूर्ण करना भी आवश्यक है। दूसरे, सामायिक के दौरान सामान्य रूप से 32 दोषों के सेवन की सम्भावना रहती है, उनका निरीक्षण-परीक्षण करके कृत अतिचारों का निराकरण कर सकें तथा भविष्य में उन दोषों से बचने का ध्यान रख सकें, एतदर्थ सामायिक पूर्ण करने का पाठ बोलना आवश्यक है। तीसरे, सामायिक की स्मृति व शुद्धि के लिए सामायिक पूर्ण करना अनिवार्य है।
शंका - रात्रि में कुस्वप्न आये तो प्रातः कालीन उसका प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त कर लिया जाता है, पर दिन में यदि कुस्वप्न आए तो क्या करना ? समाधान - सर्वप्रथम तो साधु को दिन में निद्रा लेने का निषेध है अतः स्वप्न आने की संभावनाएँ कम हो जाती है। दूसरा रात्रि या प्रातः वेला के स्वप्नों को जितना फलदायी माना है, दिवस सम्बन्धी स्वप्न उतने फलदायी नहीं होते, दिन में कोई पाप क्रिया होने या दुःस्वप्न आने पर उसका प्रायश्चित्त उसी समय किया जा सकता है। रात्रि में निद्रा की अवस्था में यह नहीं हो सकता तथा रात्रि के स्वप्न के दुर्विचार पूरे दिन मन को अशांत रख सकते हैं, अतः उनके निवारण के लिए कायोत्सर्ग आवश्यक हो जाता है। यदि दिवस में किसी का मन अशांत हो रहा हो तो वह गुरु से इस विषय में चर्चा कर सकता है और यदि कायोत्सर्ग कर भी लिया जाए तो कोई दोष या अवज्ञा प्रतीत नहीं होती ।
शंका- कभी चैत्यवन्दन के बाद 'जंकिंचि सूत्र' बोला जाता है और कभी नहीं, ऐसा क्यों?
समाधान- जब अरिहंत और सिद्ध पद की आराधना हेतु चैत्यवन्दन किया जाता है तब जंकिंचि सूत्र बोलते हैं किन्तु जब किसी तीर्थ प्रमुख या आचार्य आदि पदों के निमित्त चैत्यवंदन किया जाता है तब जंकिंचि सूत्र बोलने की परम्परा नहीं है, क्योंकि इस सूत्र में समस्त तीर्थों एवं प्रतिमाओं को वन्दन किया गया है आचार्य आदि का पद उनसे निम्न है।