SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...189 विचित्र है, फिर छद्मस्थ होने से ज्ञात-अज्ञात में भूल हो जाना स्वाभाविक है। कभी-कभी वह भूल करके भी तुरन्त उस पर पश्चात्ताप नहीं करता है। अहंकार वश क्रोध की आग अन्तर में धधकती रहती है और उसे शान्त होने में कभीकभार कुछ दिवस या महीनों तक लग जाते हैं। जब धीरे-धीरे मन शान्त होता है तब मनुष्य को अपनी भूल का भान होता है, इसलिए उक्त पाँचों समयों में प्रतिक्रमण करने का विधान किया गया है। जो केवल सांवत्सरिक प्रतिक्रमण ही करते हैं उन लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि वर्षभर के पाप कर्म एक साथ नष्ट कर डालेंगे, तब अन्य चार समयों के प्रतिक्रमण की क्या जरूरत? वस्तुत: यह अनुचित है, क्योंकि वर्ष भर में किये गये पाप कार्यों का स्मरण वर्ष के अन्त में एक साथ नहीं आ सकता। स्मरण शक्ति कमजोर होने से बहुत सारे पाप आलोचना एवं शोधन करने के उपरान्त भी रह सकते हैं। जैसे प्रतिदिन घर की सफाई करना आवश्यक है वरना बहुत दिनों की धूल या कचरे से भरे हुए स्थान को एक बार में स्वच्छ नहीं किया जा सकता, वैसे ही वर्ष भर के अन्तराल में लगे हुए पाप रूपी कचरे को एक बार के प्रतिक्रमण से साफ कर देना असम्भव है अत: पाँचों समयों में प्रतिक्रमण करना चाहिए। दूसरा तर्क यह है कि यदि घर का सारा कचरा सिर्फ दीपावली के दिन ही साफ करें और वर्ष भर एकत्रित होने दें तो क्या स्थिति हो सकती है, अत: प्रतिक्रमण जितना शीघ्र किया जाये उतना ही श्रेयकर है इससे मन की कलुषता शीघ्र समाप्त हो जाती है। आगम ग्रन्थों में कहा गया है कि साधु के द्वारा प्रमादवश या जान-बूझकर किसी प्रकार का अतिचार (दोष) लग जाये अथवा परस्पर कलह आदि हो जाये तो उसकी शुद्धि तुरन्त कर लेनी चाहिए, क्योंकि जब तक वह साधुकृत दोषों का प्रतिक्रमण या प्रायश्चित्त न कर लें तब तक उसे आहार करना, विहार करना और यहाँ तक कि शास्त्र स्वाध्याय करना भी निषिद्ध माना गया है। शंका- सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 40 लोगस्स ऊपर एक नवकार मन्त्र का कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है? समाधान- एक नवकार का अतिरिक्त स्मरण करना ‘मंगल निमित्त है। ऐसा सुनने में आता है, किन्तु हमारी दृष्टि से निर्धारित श्वासोश्वास की गिनती पूर्ण करने हेतु किया जाता है। विशेषं तु ज्ञानीगम्यम्।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy