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190... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
शंका- खरतर परम्परानुसार पाक्षिक प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में जयतिहुअण स्तोत्र का चैत्यवंदन ही क्यों बोला जाता है?
समाधान- इस सम्बन्ध में ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना खरतरगच्छ के आचार्य अभयदेवसूरि ने स्वगच्छ के उद्देश्य से की तथा यह स्तोत्र अतिशय प्रधान होने के कारण भी इसे प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में स्थान दिया गया है। दैवसिक प्रतिक्रमण में भी यही स्तोत्र बोला जाता है।
शंका- प्रतिक्रमण सूत्रों को बोलते एवं कायोत्सर्ग आदि करते समय भिन्न-भिन्न आसनों का प्रयोग क्यों?
समाधान- इसका हेतु यह है कि लम्बे समय तक एक आसन में बैठने से व्याकुलता एवं प्रमाद आने की पूर्ण संभावना रहती है अत: उसका निवारण करने के लिए। दूसरे, वीरासन, उत्कटासन आदि ऐसे आसन हैं कि जिनसे स्वास्थ्य लाभ होने के साथ-साथ प्रमाद आदि दोष नष्ट होकर चित्तवृत्ति सात्त्विक बनी रहती है और उससे उत्तरोत्तर विशुद्ध परिणाम बने रहते हैं।
शंका- पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में संबुद्धा खामणा, प्रत्येक खामणा एवं समाप्ति खामणा ऐसे तीन बार क्षमायाचना क्यों?
समाधान- इस प्रश्न का एक समाधान आगे कर चुके हैं। दूसरा यह है कि जैसे मलीन वस्त्र को स्वच्छ करने के लिए सर्वप्रथम उसे सर्फ, सोडा आदि में भीगोकर रखते हैं। तदनन्तर दूसरे क्रम पर साबुन-ब्रश आदि के द्वारा रगड़कर उसकी विशेष शुद्धि की जाती है तथा अन्त में पानी से निकालकर उसकी पूर्ण सफाई की जाती है। इसी तरह उक्त तीन क्षमापनाओं का आशय समझना चाहिए। इसमें छोभ (थोभ) वन्दन आत्म परिणति को निर्मल करने की अन्तिम सीढ़ी है।
शंका- पाक्षिक प्रतिक्रमण में पौषधवाही हो तो वंदित्तु सूत्र का आदेश उन्हें ही क्यों दिया जाता है? ___समाधान- पाक्षिक प्रतिक्रमण के मुख्य सूत्र पौषधवाहियों से ही बुलवाने चाहिए, ऐसा वृद्ध पुरुषों का कहना है। लेकिन इस धारणा में कोई आग्रह नहीं है। नियमत: उपधान किया हुआ गृहस्थ ही प्रतिक्रमण सूत्रों को बोलने का अधिकारी है।
शंका- पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण गुरु से पृथक करने पर प्रतिक्रमण के कितने दिन बाद तक क्षमायाचना और निर्धारित तप पूर्ण कर सकते हैं?