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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...185 बृहद् अतिचार एवं उसकी प्रायश्चित्त दान विधि तत्पश्चात संक्षेप आलोचना के लिए ‘इच्छामि ठामि' का पाठ बोलते हैं। फिर विस्तार से आलोचना करने के लिए पाक्षिक अतिचार (यह पाठ गुजराती एवं हिन्दी भाषा में है) बोले जाते हैं। यहाँ एक व्यक्ति अतिचार बोलता है और शेष उपस्थित समुदाय एकाग्रचित्त हो सुनता है। उसके बाद कृत अतिचारों का प्रायश्चित्त मांगने हेतु 'सव्वस्सविसूत्र' बोलते हैं। इस सूत्र के द्वारा सर्व दोषों का प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त ग्रहण किया जाता है। इसके बाद गुरु भगवन्त तप प्रायश्चित्त के रूप में एक उपवास, दो आयंबिल, तीन नीवि, चार एकासणा, आठ बियासणा अथवा दो हजार स्वाध्याय करने का प्रवेदन करते हैं। तब जिसने पाक्षिक तप कर लिया हो वह ‘पइट्ठिओ' शब्द बोलता है। इसका अर्थ यह है कि “मैं अभी तथाविध तप में स्थित हूँ।' जिसे अति निकट में पाक्षिक तप पूर्ण करने की भावना है वह 'तहत्ति' शब्द बोलता है। कुछ मौन में रहते हैं तो कुछेक 'यथाशक्ति' कहकर उस तप को अंशत: स्वीकार करते हैं। पन्द्रह दिन के दरम्यान किये गये पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए इस तप की योजना है। निर्धारित तप में से यथाशक्ति कोई भी तप करने पर ही यह आत्मा पन्द्रह दिन के पापों से मुक्त बनती है इसलिए एक उपवास परिमाण जितना तप अवश्य करना चाहिए। संवत्सरी प्रतिक्रमण तेला से अथवा सम्पूर्ण वर्ष में एक तेला जितना तप करके करना चाहिए। एक तेला करने से वर्षभर में किये गये दोषों से आत्मा हल्की हो जाती है। खरतरगच्छ परम्परा में तप देने की परिपाटी समाप्ति खामणा के बाद है। प्रत्येक क्षमायाचना क्यों? पन्द्रह दिन में किए गए पापों का प्रायश्चित्त स्वीकार करने के बाद प्रतिक्रमण मंडली में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा पृथक्-पृथक् क्षमायाचना की जाती है। ___ यहाँ संघ के प्रत्येक आराधक द्वारा क्षमायाचना करने का आशय यह है कि इस विधि से पूर्व प्रतिक्रमण करने वालों ने पक्षकृत पापों से विमुक्त होने के लिए प्रायश्चित्त ग्रहण किया है यानी उन्होंने अपने समस्त दुष्कार्यों को गुरु के समक्ष प्रकट कर आत्म दशा को निश्छल-निर्मल बना लिया है। उससे पूर्व व्यक्तिगत
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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