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186... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
रूप से किसी के साथ मन मुटाव रहा हो तो उसे समाप्त करने के लिए प्रत्येक से आत्मवत भाव जोड़ा जाता है, क्योंकि पापों का प्रायश्चित्त स्वीकार करने के बाद मनोभूमि उर्वरा भूमि के समान पोली बन जाती है और उस स्थिति में की गई क्षमायाचना ही वास्तविक फलदायी होती है। इस प्रकार प्रायश्चित्त स्वीकार के पश्चात प्रत्येक क्षमायाचना करने से व्यक्ति द्रव्य और भाव दोनों से पाप मुक्त बन जाता है। दूसरे, मनोयोग पूर्वक प्रतिक्रमण करने वाले ही इस विधि का रहस्यगत अनुभव कर सकते हैं इसलिए प्रत्येक क्षमायाचना यथाक्रम में और मनोभाव पूर्वक करने जैसी है। ___प्रत्येक क्षमायाचना करने से पूर्व तथा पश्चात विनय के परिपालनार्थ गुरु को द्वादशावत वंदन किया जाता है। स्वयं के द्वारा हुए अपराधों को स्वीकार कर उसकी वैयक्तिक रूप से क्षमा मांगना अत्यन्त मुश्किल है, लेकिन गुरु कृपा से सब कुछ शक्य हो जाता है। यहाँ इसीलिए वंदन विधि की जाती है। पाक्षिकसूत्र सुनाने की परम्परा कब से और क्यों? । - प्रत्येक क्षमायाचना के बाद पक्खी सूत्र बोला जाता है। यह सूत्र मुनि आचार से सम्बन्धित है। इसमें साधु-साध्वी के द्वारा अनुपालित पाँच महाव्रत, छठवाँ रात्रि भोजन विरमणव्रत, तैंतीस स्थान आदि में किसी प्रकार का दोष लगा हो तो उसका मिथ्या दुष्कृत दिया जाता है। इस सूत्र को भाव पूर्वक पढ़ने पर मुनिजन व्रत दोष से रहित हो जाते हैं। इस प्रकार यह व्रत अतिचारों की शुद्धि करने वाला सूत्र है। पर्व विशेष में विशिष्ट शुद्धि करने के उद्देश्य से ही इसका स्मरण किया जाता है।
यह सूत्र आचार्य हेमचन्द्र (12वीं शती) के समय प्रतिक्रमण विधि में प्रविष्ट हो चुका था, इससे पूर्व का कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। 12वीं शती से आज तक यह पाक्षिक आदि दिनों में नियमित बोला जाता रहा है।
इस सूत्र को बोलने के अधिकारी मुनि ही होते हैं, क्योंकि यह सूत्र मुनि धर्म की आचार संहिता से संबद्ध है। इसलिए साधु-साध्वी की निश्रा हो तो पाक्षिक आदि दिन में प्रतिक्रमण कर्ता इसे सुन सकते हैं अन्यथा श्रावकश्राविकाएँ इस जगह 'वंदित्तुसूत्र' बोलते हैं। इसमें एक साधु पक्खी सूत्र बोलता है और शेष सभी ध्यान मुद्रा में सुनते हैं ऐसी वर्तमान परिपाटी है।
पाक्षिक सूत्र की समाप्ति पर सामूहिक रूप से श्रुतदेवता की स्तुति बोली