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प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...183 थोभ वन्दन किया जाता है तथा श्रावक ‘अड्डाईज्जेसु सूत्र' बोलते हैं। उक्त सर्व विधियाँ मंगल कारक समझनी चाहिए। __तदनन्तर वर्तमान सामाचारी के अनुसार सीमंधरस्वामी और सिद्धाचलजी का सम्पूर्ण चैत्यवन्दन किया जाता है। कुछ लोग पार्श्वनाथ भगवान, सम्मेत शिखर तीर्थ, ज्ञानपद आदि का भी चैत्यवन्दन करते हैं।
पाक्षिक प्रतिक्रमण के हेतु पाक्षिकादि प्रतिक्रमण क्यों?
समाधान- दिन और रात्रि सम्बन्धी दोषों का हर दिन प्रतिक्रमण करने पर भी यदि कोई अतिचार छुट गया हो, अथवा स्मरण करने पर भी भय आदि के कारण गुरु समक्ष उसका प्रतिक्रमण न किया हो, अथवा मंद परिणाम के कारण उसका योग्य रीति से पश्चात्ताप न किया हो तो उस प्रकार के अतिचारों का प्रतिक्रमण करने तथा विशेष शुद्धि के लिए पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किये जाते हैं।
'आज पक्खी चौमासी या संवत्सरी प्रतिक्रमण है' यह प्रतीति ही दिल में संवेग, वैराग्य, पापभीरूता आदि के भाव पैदा कर देती है। इसीलिए दैनिक प्रतिक्रमण में जिन पापों की आलोचना के लिए साहस या उद्यम के भाव न बने हो, वे इस प्रतिक्रमण के समय आ सकते हैं तथा इनके प्रभाव से उन पापों की भी आलोचना-प्रायश्चित्त वगैरह किया जा सकता हैं। शास्त्रों में कहा भी गया है
जह गइ पई-दिवसं पि, सोहियं तहवि पव्व संधीसु ।
सोहिज्जइ सविसेसं, एवं इहयं पि नायव्वं ।। जिस तरह घर प्रतिदिन साफ किया जाता है लेकिन पर्वादि के दिनों में विशेष प्रकार से सफाई करते हैं उसी प्रकार उभय सन्ध्याओं में हर दिन प्रतिक्रमण करने पर भी पाक्षिक (चतुर्दशी) के दिन छोटे-बड़े अतिचारों की विशेष शद्धि की जाती है। पाक्षिकादि प्रतिक्रमण की विधियाँ अधिक क्यों?
दाग जितना पुराना होता है उसे मिटाने के लिए उतना ही विशिष्ट प्रयत्न करना होता है उसी प्रकार पाक्षिक आदि दिनों में जिन अतिचारों की शद्धि की जाती है वे पन्द्रह दिन के अन्तराल के दोष होने से पुराने होते हैं। इस प्रकार