________________
178... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
सामाचारी के अनुसार यह कायोत्सर्ग कुछ जन प्रतिक्रमण के अन्त में तो कुछ परम्पराएँ प्रारम्भ में करती हैं। सम्भवतः ग्रन्थकर्ता जयचन्द्रसूरि के समय में यह कायोत्सर्ग कुछ परम्पराओं के द्वारा प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में भी किया जाता होगा। वर्तमान में तो प्राय: छह आवश्यक की मूल-विधि सम्पन्न होने के बाद ही करते हैं।
शंका- दैवसिक प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में तथा छह आवश्यक के पूर्ण होने पर आचार्य आदि अथवा भगवानहं आदि को चार खमासमण द्वारा वंदन क्यों करते हैं?
समाधान- जिस तरह सार्थवाह विविध प्रकार का व्यापार करने के लिए परदेश जाता है तो उससे पहले भेंट लेकर राजा और मंत्री के समीप पहुँचता है
और अपना कार्य निर्विघ्न सफल हो ऐसा आशीर्वाद चाहता है तथा जब व्यापार करके पुन: लौटता है तब भी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए राजा व मंत्री के निकट जाकर भेंटना देता है तथा नमस्कार पूर्वक कहता है कि आपकी कृपा से मेरा इष्ट कार्य अच्छी तरह से सिद्ध हुआ। इसी तरह प्रतिक्रमण भी एक महत्त्वपूर्ण विधान है। उसकी सम्पूर्ण सिद्धि हेतु क्रिया के प्रारम्भ में राजा के समान अरिहंत परमात्मा
और मंत्री के समान आचार्य आदि गुरु को इसलिए वंदन करते हैं कि आपकी कृपा से मेरी यह साधना निर्विघ्न रूप से उल्लास पूर्वक सम्पन्न हो तथा छ: आवश्यक के अंत में आपकी कृपा से यह महान योग उत्साह पूर्वक पूर्ण हुआ, इस कृतज्ञता भाव को व्यक्त करने के लिए वंदन करते हैं।
शंका- दैवसिक प्रतिक्रमण में द्वादशावर्त वन्दन चार बार क्यों?
समाधान- धर्मसंग्रह टीका (भा. 2, पृ. 254) के अनुसार प्रथम वन्दन आलोचना हेतु, दूसरा वन्दन क्षमायाचना करने हेतु, तीसरा वन्दन आचार्य आदि सर्व संघ से विशिष्ट क्षमायाचना करने हेतु तथा चौथा वन्दन प्रत्याख्यान ग्रहण करने हेतु किया जाता है। ___शंका- दैवसिक प्रतिक्रमण में चारित्राचार की शुद्धि हेतु दो बार कायोत्सर्ग क्यों?
समाधान- प्रतिक्रमण हेतु गर्भ (पृ. 12) के अनुसार चारित्राचार की शुद्धि हेतु पहली बार दिवस सम्बन्धी अतिचारों का चिन्तन किया जाता है, जबकि