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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...177 आवश्यक गुणधारण अर्थ में Energy Tonic रूप है । अतः आवश्यक के क्रम में प्रत्याख्यान आवश्यक का स्मरण कर लेना चाहिए। क्रमानुसार इसका स्थान भी यही है। दैवसिक प्रतिक्रमण के प्रारंभ में तो सूर्यास्त से पूर्व प्रत्याख्यान लेने का नियम होने से एवं अधिक से अधिक प्रत्याख्यान दशा में रहने के भाव से प्रत्याख्यान किया जाता है। उसके बाद हितशिक्षा की कामना रूप में 'इच्छामो अणुसट्ठि' बोला जाता है। फिर ‘नमो खमासमणाणं' इस पद के द्वारा भी गुरु को नमन करने पूर्वक अनुशास्ति की प्रार्थना की जाती है। तदनु 'नमोऽर्हत् सूत्र' कहकर 'नमोस्तु वर्धमानाय सूत्र' बोलते हैं । प्रश्न - संसार दावानल की चार स्तुतियों में से तीन स्तुति ही क्यों बोलते हैं? उत्तर- संसारदावानल की तीन स्तुतियाँ आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित है तथा चौथी स्तुति की रचना करते-करते उनका प्राणान्त होने से वह अधूरी रह गई और उसे श्रीसंघ ने पूर्ण किया। संघ कृत एवं शोक सूचक होने के कारण इसे दैवसिक प्रतिक्रमण में बोलने की परम्परा नहीं है। तपागच्छ परम्परा में पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण के समय एवं आचार्य आदि के काल धर्म होने पर देववन्दन करते समय चारों स्तुतियाँ कही जाती है । शंका- पूर्व प्रतिक्रमण में ज्ञान - दर्शन एवं चारित्र आचारों की शुद्धि हेतु कायोत्सर्ग कर चुके हैं फिर दैवसिक प्रायश्चित्त सम्बन्धी कायोत्सर्ग की क्या आवश्यकता है? समाधान- 'द्विर्बद्धं सुबद्धं भवती' - इस न्याय से प्राणातिपात आदि विरमण अतिचारों की विशुद्धि निमित्त दैवसिक प्रायश्चित्त रूप कायोत्सर्ग करते हैं। जिस प्रकार important documents और गहनों को Lock की तिजोरी में रखने के बाद भी उसे सुरक्षित कमरे में रखा जाता है वैसे ही आत्मा को भी अतिचार एवं दोष रूप चोरों से सुरक्षित रखने के लिए बार-बार प्रायश्चित्त रूप कायोत्सर्ग से उसकी शुद्धि की जाती है। हेतुगर्भ (पृ. 15) में कहा भी गया है कि गुरुथुइगहणे थुइतिणि, वद्धमाणक्खरस्सरा पढइ । सक्कत्थवं थवं पढिय, कुणइ पच्छित्त उस्सग्गं ।। पाणिवह मुसावाए, अदत्तमेहुण परिग्गहे चेव । सयमेगंतु अणूणं, ऊसासाणं हविज्जाहि ।।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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