________________
164... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 'इच्छामो अणुसटुिं' ऐसा वचन बोलते हैं। इसका पारिभाषिक अर्थ यह है कि गुरु के सभी आदेश पूर्ण होने के बाद अब हितशिक्षा के रूप में नयी आज्ञा हो तो उसके परिपालन की इच्छा करता हूँ। इसका दूसरा आशय यह है कि शिष्य ने प्रतिक्रमण करने की गुर्वाज्ञा को अपनी इच्छापूर्वक पूर्ण किया है, उसका स्वेच्छा से अनुपालन किया है, राजाज्ञा के समान औपचारिकता नहीं की है। ___'इच्छामो अणुसटुिं' के पश्चात 'नमो खमासमणाणं' बोला जाता है। पूर्वकाल में 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' की तीनों स्तुति के अन्त में गुरु के वचनों का बहुमान और उसे स्वीकार करने के रूप में यह वचन बोला जाता था। आजकल प्रायः ‘इच्छामो अणसर्व्हि' एक बार कहा जाता है। ___ तदनन्तर वर्धमान (ऊँचे) स्वर में, वर्धमान (बढ़ते हुए) अक्षर युक्त, श्री वर्धमान स्वामी की स्तुति बोली जाती है। इसमें समाचारी यह है कि गुरु का विनय करने के लिए पहले एक स्तुति गुरु बोलते हैं फिर तीन स्तुतियाँ सभी साथ में बोलते हैं। पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में गुरुजनों का एवं पर्व का विशेष बहुमान करने के लिए गुरु द्वारा तीनों स्तुतियाँ बोलने के पश्चात सभी शिष्यजन पुनः इन स्तुतियों को साथ में बोलते हैं। वर्तमान में इस सामाचारी का पालन नहींवत रह गया है। __यहाँ स्तुति के सम्बन्ध में यह भी ध्यातव्य है कि दैवसिक प्रतिक्रमण में पुरुष 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' तथा स्त्रियाँ 'संसारदावानल' की स्तुति बोलती हैं। रात्रिक प्रतिक्रमण में खरतर परम्परा के अनुसार पुरुष 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' एवं तपागच्छ आदि परम्पराओं के अनुसार 'विशाललोचन' की स्तुति पढ़ते हैं तथा सभी परम्पराओं में बहिने 'संसारदावानल' की स्तुति बोलती हैं। पुरुष और स्त्रियों के लिए भिन्न-भिन्न स्तुतियों का प्रावधान क्यों? ___ नमोऽस्तु वर्धमानाय' की स्तुति 14 पूर्वो में से उद्धृत है ऐसा माना जाता है और पूर्वो को पढ़ने का अधिकार पुरुषों को ही प्राप्त है। शास्त्रों में इसका दूसरा हेतु यह भी बताया गया है कि
बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां, नृणां चारित्रकांक्षिणां । अनुग्रहार्थं सर्वज्ञैः, सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ।।
(हेतुगर्भ, पत्र-13) अर्थात स्त्रियों को संस्कृत पढ़ने का अधिकार नहीं है इसलिए तीर्थंकरों ने अनुग्रह करने हेतु प्राकृत भाषा में ही उपदेश दिया है। नाटक आदि में भी प्रायः