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प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...159 प्रतिक्रमण में द्वादशावर्त वन्दन अनेक बार क्यों किया जाता है? __ प्रतिक्रमण में कुल चार बार द्वादशावर्त वन्दन करते हैं- 1. वंदितु सूत्र के पहले दिवसकृत पापों की आलोचना करने के लिए 2. वंदित्तु सूत्र के तुरन्त बाद दिनभर में एवं प्रतिक्रमण के दौरान हुई गुरु आशातना आदि की क्षमायाचना करने के लिए 3. पाँचवें कायोत्सर्ग आवश्यक के पूर्व आचार्य-उपाध्याय आदि सकल संघ के प्रति हुए कषायों को दूर करते हुए उनकी शरण स्वीकार करने के लिए 4. छठवें प्रत्याख्यान आवश्यक से पूर्व दिवसचरिम प्रत्याख्यान लेने के लिए- इस प्रकार आलोचना, क्षमापना, शरण स्वीकार और प्रत्याख्यान ग्रहण के उद्देश्य से चार बार द्वादशावर्त वन्दन किया जाता है। गुरु को कितने प्रयोजनों से द्वादशावर्त्त वन्दन करना चाहिए? गुरुवन्दन भाष्य में कहा गया है कि
पडिक्कमणे सज्झाए, काउस्सग्गावराह-पाहुणए ।
आलोयण-संवरणे, उत्तमढे य वंदणयं ।। प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, अपराधों की क्षमायाचना से पूर्व, अतिथि साधु के आने पर, आलोचना, प्रत्याख्यान और अनशन स्वीकार करते समय- इन आठ प्रसंगों के उपस्थित होने पर द्वादशावर्त वन्दन करना चाहिए।
सकल संघ से क्षमायाचना- अब्भुट्ठिओमि सूत्र बोलने के पश्चात गुरु को पुन: द्वादशावर्त वन्दन करते हैं। इसका रहस्य यह है कि जो पाप आलोचना प्रायश्चित्त और प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त से भी शुद्ध नहीं हुए हैं उनकी विशुद्धि कायोत्सर्ग से करते हैं। कायोत्सर्ग भी गुरुवन्दन पूर्वक ही होता है अत: द्वादशावत वंदन के द्वारा गुरु को उत्कृष्ट वन्दन करते हुए कायोत्सर्ग की पूर्व भूमिका निर्मित की जाती है। यहाँ दूसरे वन्दन के अन्त में आत्मा को कषाय भाव से मुक्त करने के लिए अवग्रह के बाहर खड़े हो जाना चाहिए।
उसके बाद 'आयरिय उवज्झाय सूत्र' बोलते हैं। आयरिय उवज्झाय सूत्र बोलने का हेतु क्या है?
दिनभर किये गये दुष्कर्म घाव के समान है तथा कायोत्सर्ग मरहमपट्टी के तुल्य है। इसलिए प्रतिक्रमण की क्रिया में कायोत्सर्ग आवश्यक का प्रारम्भ होता है। उसमें चारित्राचार में लगे दोषों की शुद्धि के लिए सर्वप्रथम दो लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करते हैं। उसके पूर्व कषायों का उपशम करना चाहिए। यदि