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________________ 158... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना विस्तार से 'मिच्छामि दुक्कडं' देने हेतु ‘वंदित्तु सूत्र' बोलते हैं। यहाँ साधु-साध्वी 'ठाणे कमणे चंकमणे' एवं 'सव्वस्स वि'- ये दो पाठ कहते हैं तथा वंदित्तु सूत्र के स्थान पर 'पगामसिज्झाय' का पाठ बोलते हैं। । वंदित्तु सूत्र किस प्रकार बोलना चाहिए? __यह सूत्र संडासक स्थानों के प्रमार्जन पूर्वक वीरासन में बैठकर बोलना चाहिए। प्रत्येक गाथा में मन का उपयोग रखना चाहिए। प्रत्येक पद पर संवेग भाव की वृद्धि हो उस रीति से भावपूर्वक यह सूत्र बोलना चाहिए। श्रावक दिनचर्या में कहा गया है कि प्रतिक्रमणवाही श्रावक वंदित्तुसूत्र इस प्रकार बोले कि सुनने वालों की रोमराजि भी संवेगरस की वृद्धि से प्रफुल्लित हो जाए और उनकी आँखों से भी पूर्वकृत पापों की विशुद्धि होने के कारण हर्षाश्रु बहने लगे। ___ वंदित्तु सूत्र बोलते वक्त सर्वप्रथम मंगल निमित्त नमस्कार मंत्र, फिर समता भाव की वृद्धि हेतु करेमिभंते सूत्र, फिर दैवसिक अतिचारों की संक्षेप आलोचना करने हेतु 'इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ सूत्र' बोलते हैं। उसके बाद 'वंदित्तुसूत्र' बोला जाता है। इसमें 'आलोयणा बहुविहा'- इस गाथा से विस्मृत पापों की निन्दा-गर्दा करनी चाहिए। 'तस्स धम्मस्स'- गाथा बोलते हुए पाप का भार कम हुआ हो और आत्मा हल्की हुई हो ऐसा अनुभव करते हुए आराधक को खड़े हो जाना चाहिए। इसी गाथा में 'विरओमि विराहणाए' बोलते हुए विराधना से दूर हटने के लिए कदमों को पीछे की तरफ करना चाहिए। गुरुजनों से क्षमायाचना- वंदित्तु सूत्र बोलने के पश्चात महान उपकारी गुरुजनों के प्रति दिन भर में हुए अपराधों की क्षमायाचना के लिए दो बार द्वादशावर्त वन्दन पूर्वक 'अब्भुट्ठिओमि सूत्र' बोलते हैं। द्वादशावर्त वन्दन दो बार क्यों? जैसे सेवक राजा की आज्ञा सुनने के लिए पहले मस्तक झुकाकर फिर खड़े रहता है तथा दी गई आज्ञा को अमल करने के पहले भी नमस्कार करके फिर लौटता है इसी तरह दो बार वन्दन करने का विधान है। यहाँ प्रथम वांदणा में क्षमायाचना के भाव लेकर उपस्थित होते हैं तथा दूसरी बार जिनाज्ञा को अमल करने के रूप में वंदन करते हैं। इसी तरह प्रत्याख्यान आदि से सम्बन्धित द्वादशावर्त वन्दन का स्वरूप भी समझना चाहिए।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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