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________________ 156... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना • आत्मा के ज्ञान आदि सर्व गुणों में मुख्यगुण चारित्र है उसमें लगे अतिचारों की शुद्धि हेतु तथा सभी क्रियाएँ विरतिभाव में उपस्थित रहने से शुद्ध होती है इस कारण 'करेमिभंते सूत्र' का उच्चारण करते हैं। अतिचारों का चिंतन- उसके बाद दिन भर में किये गये जिन-जिन पापों का प्रतिक्रमण करना है उनका पूर्व में स्मरण कर लेना चाहिए। वह अनुस्मरण कायोत्सर्ग में शान्तिपूर्वक हो सकता है तद्हेतु इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी एवं अन्नत्थ- इन तीन सूत्रों को बोलकर कायोत्सर्ग किया जाता है। • प्रतिक्रमण का मुख्य हेतु पंचाचार की विशुद्धि है इसलिए इस कायोत्सर्ग में दिवस सम्बन्धी पाँचों आचारों में लगे अतिचारों का सूक्ष्मता से विचार कर उन्हें मन में धारण किया जाता है। इस कायोत्सर्ग में खरतर परम्परा के अनुसार दिवस संबंधी अतिचारों का स्मरण अथवा आठ नमस्कार मन्त्र का चिंतन किया जाता है। तपागच्छ आदि परम्पराओं में नाणम्मि आदि आठ गाथाओं के आधार पर दिनकृत पापों (अतिचारों) का स्मरण किया जाता है तथा साधु-साध्वी निम्न गाथा द्वारा अतिचारों का चिन्तन करते हैं सयणासण-न्न-पाणे, चेइअ-जइ-सिज्ज-काय उच्चारे । समिई भावणा गुत्ती, वितहायरणे अईआरा ।। . दूसरा चतुर्विंशति आवश्यक- जैन धर्म में विनय की प्रधानता है। इसलिए यह क्रिया देव-गुरु के वन्दन पूर्वक करनी चाहिए। तद्हेतु कायोत्सर्ग पूर्ण करने के बाद दूसरे आवश्यक के रूप में लोगस्ससूत्र बोला जाता है। इस सत्र के द्वारा चौबीस तीर्थंकरों को वन्दन करते हैं जिससे परमात्मा के प्रति विनय का पालन होता है और इससे दर्शनाचार की शुद्धि भी होती है। तीसरा वन्दन आवश्यक- तदनन्तर गुरु का विनय करने के लिए दो बार द्वादशावर्त पूर्वक वन्दन करते हैं। वन्दन करने की पूर्व तैयारी के रूप में पचास बोल पूर्वक मुखवस्त्रिका एवं शरीर का प्रतिलेखन किया जाता है। हेय का परिमार्जन और उपादेय की स्थापना करने हेतु यह क्रिया अत्यन्त रहस्यमयी है। इसलिए प्रतिलेखन की मूल विधि गुरु या अनुभवी व्यक्ति से सीख लेनी चाहिए और तदनुसार सावधानी बरतनी चाहिए। गुरुवन्दन में पच्चीस आवश्यक का पालन और बत्तीस दोषों का त्याग करने में विशेष उपयोग रखना चाहिए।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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