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________________ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...147 सम्पन्न करता हूँ। यजुर्वेद के इस मन्त्र का पाठार्थ है कि 'मेरे मन, वाणी और शरीर से जो भी दुराचरण हुआ हो, उसका मैं विसर्जन करता हूँ।' इस प्रकार हिन्दू धर्म में प्रचलित सन्ध्या कर्म एक दृष्टि से प्रतिक्रमण का ही मिलता-जुलता रूप है।64 अन्य परम्पराएँ और प्रतिक्रमण इस विश्व की जन प्रचलित अधिकांश परम्पराओं में प्रतिक्रमण के सांकेतिक उल्लेख प्राप्त होते हैं जैसे-पारसी धर्म के मुख्य ग्रन्थ खोरदेह अवस्ता में कहा गया है कि मैंने मन से बुरे विचार किये हों, वाणी से तुच्छ भाषण किया हो और शरीर से हल्का कार्य किया हो, जो भी मैंने दुष्कृत्य किये हों मैं उन सबके लिए पश्चात्ताप करता हूँ। इसी के साथ अहंकार, मृत लोगों की निन्दा, लोभ, लालच, तीव्र रोष, ईर्ष्या, स्वच्छन्दता, आलस्य, कानाफूसी, झूठी गवाही, चौर्यकर्म, व्यभिचार, दुर्विचार आदि जो भी गुनाह मुझसे जानतेअनजानते हुए हों और जिन दुष्कृत्यों को निश्चल भाव से प्रकट न किया हो उन सबसे मैं पवित्र होकर अलग होता हूँ।' इस प्रकार पाप को प्रकट कर दोषों से मुक्त होने का उपाय बतलाया गया है, जो प्रतिक्रमण के किंचिद् समरूप है।65 ईसाई धर्म में पाप मुक्ति के लिए 'कन्फेशन क्रिया' का विधान है। इसका अभिप्राय आचरित दुष्कृत्यों को स्वीकार करते हुए धर्मगुरु, पोप या पादरी के समक्ष उन्हें प्रकट करना और उनसे यथायोग्य प्रायश्चित्त (दण्ड) स्वीकार करना है। इस प्रकार ईसाई धर्म के प्रणेता महात्मा यीशु ने पाप को प्रकट करना आवश्यक माना है।66 इस्लाम धर्म में महात्मा अबूबकर ने कहा है- तौबा, खेद, पछतावा (प्रायश्चित्त) छ: बातों से पूरा होता है- 1. पिछले पापों पर लज्जित होने से 2. फिर पाप न करने का प्रयत्न (प्रतिज्ञा) करने से 3. मालिक की जो सेवा छूट गई हो, उसे पूरा करने से 4. अपने द्वारा हुई हानि का घाटा भर देने से 5. हराम के खाने से जो लोहू और चर्बी बढ़ी है, उसे तप के द्वारा धो डालने से 6. शरीर ने पाप कर्मों के द्वारा जितना सुख उठाया है, सत्य धर्म में उसे उतना ही दुःख देने से तौबा होता है।67 समाहारतः कहा जा सकता है कि प्रायः सभी धर्मों ने प्रतिक्रमण को किसी न किसी रूप में अवश्य स्वीकार किया है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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