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148... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
सन्दर्भ सूची
1. श्री जिनपति सामाचारी के अनुसार सज्झाय पाठ बोलने के पश्चात गुरु महाराज स्थापनाचार्य के आगे ‘अणुजाणह इच्छकार सुहराई सुखतप शरीर निराबाध संयम यात्रा सुखे निरवहो छो जी ?' इतना वाक्य बोले। अन्य साधु प्रतिक्रमण के बाद गुरु को वन्दन करते समय यह पाठ बोलें। वर्तमान में गुरु सम्बन्धी सामाचारी कहीं प्रचलित तो कहीं अप्रचलित है। साधुविधिप्रकाश, प. 1 2. कुछ परम्पराओं में यदि गृहस्थ साथ में प्रतिक्रमण कर रहा हो तो 'इच्छकारी `समस्त श्रावकों को वन्दूं' यह वाक्य भी बोला जाता है। 3. राइयं च अइयारं, चिंतिज्ज अणुपुव्वसो । नाणंमि दंसणंमी, चरितंमि तवंमि य ॥
पारिय काउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरूं । राइयं तु अइयारं, आलोएज्ज जहक्कमं ॥
पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वंदित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥
उत्तराध्ययनसूत्र, 26/47-49
4. पंचवस्तुक, 494 505, 552 5. योगशास्त्र, प्रकाश 3, श्लो. 129 की टीका 6. मिच्छादुक्कडं पाणिवाय, दंडयं काउसग्गतियं करणं । पुत्तिय वंदण आलोय, सुत्त वंदणय खामणयं ॥ वंदणयं गाहातिह पाढो, छम्मासियस्स उस्सग्गो । पुत्तिय वंदणा नियमो, थुइतिय चिइ वंदना राओ ॥
प्रवचन सारोद्धार, 3/177-178
7. इरिया कुसुमिणुस्सग्गो, जिणमुणि वंदण तहेव सज्झाओ । सव्वस्सवि सक्कत्थउ, तिन्नि उ उस्सग्ग कायव्वा ॥
चरणे दंसणनाणे दुसु, लोगुज्जोय तइय अइयारा। पोत्ती वंदण आलोय, सुत्त तह वंद खामणयं ||
वंदण तव उवसग्गो, पोती वंदणय पच्चक्खाणं तु । अणुसट्ठि तिन्नि, थुई वंदण बहुवेलं पडिलेहा ॥
सुबोधा सामाचारी, पृ. 15