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________________ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...143 उच्छ्वासों (कायोत्सर्ग) पूर्वक 17-18 भक्ति पाठ, बृहद् आलोचना पाठ, लघु आलोचना पाठ, प्रतिक्रमण दण्डक आदि बोले जाते हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर प्रतिक्रमण के पाठों की तुलना श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्पराओं में प्रतिक्रमण के जो पाठ उपलब्ध हैं वे किंचिद् भेद के साथ दिगम्बर परम्परा की प्रतिक्रमण विधियों में भी प्राप्त होते हैं। जैसे1. दिगम्बर परम्परावर्ती प्रतिक्रमण विधि का ‘पश्चात्तापसूत्र' श्वेताम्बर परम्परा के सामायिक पारने के सूत्र में गुम्फित ‘जं जं मणेण चिंतिय' वाली गाथा एवं इरियावहिसूत्र के समकक्ष हैं। 2. दिगम्बर परम्परावर्ती प्रतिक्रमण विधि का 'सामायिक दण्डक' श्वेताम्बर - परम्परा के मंगल पाठ (चत्तारिमंगलं), अड्डाईज्जेसु, करेमिभंते एवं ____ अन्नत्थसूत्र से क्रमशः मिलते जुलते हैं। 3. दिगम्बर परम्परागत आलोचना पाठ का प्रारम्भिक अंश श्वेताम्बर मान्य 'इच्छामिठामि' (आलोचनासूत्र) से तथा उसका परवर्ती भाग श्वेताम्बर प्रसिद्ध 'इरियावहि पाठ' के सदृश है। 4. दिगम्बर आम्नायवर्ती 'प्रतिक्रमण पीठिका दण्डक' के पृथक्-पृथक् अंश श्वेताम्बर के पाक्षिकसूत्र, पगामसिज्झाय और ईरियावहि सूत्र के समान हैं। 5. दिगम्बर परम्परा का 'प्रतिक्रमण दण्डक' श्वेताम्बर के पाक्षिकसूत्र से मिलता-जुलता है तथा लघु एवं बृहद् आलोचना पाठ भी श्वेताम्बर के __ आलोचना (अतिचार) पाठ से मिलते हैं।56 इसी तरह अन्य सूत्र पाठों में भी समानताएँ हैं। बौद्ध परम्परा और प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण दोष मुक्ति की साधना है। यदि तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो अवगत होता है कि जैन परम्परा की भाँति अन्य परम्पराओं में भी पाप मुक्ति के अलग-अलग उपाय बताये गये हैं। जहाँ तक जैन धर्म के समकालीन बौद्ध धर्म का प्रश्न है वहाँ 'प्रतिक्रमण' इस शब्द का उल्लेख तो प्राप्त नहीं होता है, किन्तु इसके स्थान पर ये तीन नाम मिलते हैं- 1. प्रतिकर्म 2. प्रवारणा और 3. पाप देशना।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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