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142... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
तदनन्तर पुनः तीन आवर्त्त और एक शिरोनति करके बृहद्सिद्ध भक्ति अञ्चलिका सहित पढ़ें। उसके बाद पुनः आवर्त्त विधि, सामायिक दण्डक एवं 'थोस्सामि स्तव' आदि कहकर आलोचना पाठ पूर्वक चारित्र भक्ति बोलें। फिर बृहद् आलोचना का पाठ बोलें। इसी क्रम में आचार्य भगवन्त लघुसिद्ध भक्ति, लघु योगिभक्ति, कायोत्सर्ग आदि करके अरिहंत परमात्मा के समक्ष अपने दोषों की आलोचना करें तथा अपराध के अनुसार स्वयं प्रायश्चित्त ग्रहण करते हुए शिष्यों को भी योग्य प्रायश्चित्त दें।
उसके पश्चात गुरु भक्ति का पाठ बोलकर कायोत्सर्ग करें। तदनन्तर शिष्य वर्ग आचार्य के सम्मुख तीन बार 'छेदोवट्ठावणं होदु मज्झं' का पाठ कहें। फिर प्रतिक्रमण भक्ति पूर्वक 27 उच्छ्वासों का कायोत्सर्ग कर थोस्सामि दण्डक पढ़ें।
तदनन्तर आचार्य गणधर वलय का पाठ पढ़ें। उसके बाद आचार्य प्रतिक्रमण दण्डक (पाक्षिकसूत्र ) बोलें और शिष्य गण कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित रहकर सुनें।
फिर वीरभक्ति आदि पाठ बोलकर पाक्षिक प्रतिक्रमण में 300, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में 400 तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 500 श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग कर प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव कहें। तत्पश्चात शान्ति चतुर्विंशति तीर्थंकर भक्ति' आदि पाठ बोलकर 27 श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करें तथा प्रकट में लोगस्ससूत्र एवं कुछ भक्तियाँ पढ़ते हुए पूर्ववत 'नमो अरिहंताणं' इत्यादि दण्डक बोलकर कायोत्सर्ग करें। उसके बाद सर्व अतिचारों की विशुद्धि के 'लघु चारित्र आलोचना का पाठ पढ़ें तथा पूर्ववत 'नमो अरिहंताणं' इत्यादि दण्डक बोलकर 27 उच्छ्वासों का कायोत्सर्ग करें।
तदनन्तर ‘मध्यम आचार्य भक्ति' एवं 'बृहद् आलोचना पाठ' बोलकर पूर्ववत 27 उच्छ्वासों का कायोत्सर्ग करें। उसके पश्चात 'लघु आचार्य भक्ति’ एवं ‘क्षुल्लक आलोचना पाठ' पढ़कर पूर्ववत 27 उच्छ्वासों का कायोत्सर्ग करें।
उसके बाद 'समाधि भक्ति' पढ़कर कायोत्सर्ग करें। इसी क्रम में ‘सिद्धभक्ति' पढ़कर कायोत्सर्ग करें तथा 'आचार्य भक्ति' पढ़कर कायोत्सर्ग करें और आचार्य को वन्दन करें ।
इस प्रकार दिगम्बर परम्परा में पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण के अन्तर्गत 27