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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...139 तृतीय आवश्यक- इस आवश्यक में दो बार सुगुरुवंदन सूत्र का विधिवत उच्चारण करें।
चतुर्थ आवश्यक- तदनन्तर चतुर्थ आवश्यक की आज्ञा लें। फिर दोनों हाथ जोड़कर दाएं घुटने को ऊँचा रखते हुए निम्न पाठ बोलें1. ज्ञानातिचारसूत्र 2. दर्शनातिचारसूत्र 3. चारित्रातिचारसूत्र 4. प्रतिक्रमणसूत्र 5. तस्स सव्वस्ससूत्र 6. नमस्कारसूत्र 7. सामायिकसूत्र 8. मंगलसूत्र 9. प्रतिक्रमणसूत्र 10. ईर्यापथिकसूत्र 11. शय्या-अतिचार प्रतिक्रमणसूत्र 12 गोचर्या अतिचार प्रतिक्रमणसूत्र 13. स्वाध्याय आदि अतिचार प्रतिक्रमणसूत्र 14. एकविध आदि अतिचार प्रतिक्रमणसूत्र 15. निग्रन्थ प्रवचन में स्थिरीकरण सूत्र 16. क्षमायाचनासूत्र। फिर दो बार सुगुरुवंदन सूत्र बोलते हुए विधिवत वन्दन करें। फिर पाँच पदों को वन्दन करें। क्षमायाचनासूत्र कहें और चौरासी लाख जीवयोनि का पाठ उच्चरित कर शुद्ध भावों से क्षमायाचना करें। __पंचम आवश्यक- फिर पाँचवे आवश्यक की आज्ञा लें और दैवसिक अतिचार की विशुद्धि निमित्त खड़े होकर नमस्कारसूत्र, सामायिक सूत्र, प्रतिक्रमणसूत्र, कायोत्सर्गसूत्र कहकर चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। फिर नमस्कारसूत्र बोलकर लोगस्ससूत्र का प्रकट उच्चारण करें तथा दो बार वन्दनसूत्र के पाठ का विधिपूर्वक उच्चारण करें।
षष्ठम आवश्यक- तत्पश्चात छठे प्रत्याख्यान आवश्यक की आज्ञा लें। उसके बाद 'अतीत काल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल का सामायिक और भविष्य काल का प्रत्याख्यान करता हूँ' ऐसा कहकर यथाशक्ति प्रत्याख्यान करें। फिर छह आवश्यक में लगे दोषों का मिच्छामि दुक्कडं दें। उसके बाद पूर्वोक्त विधि से दो बार शक्रस्तव कहें।
कुछ नियम- 1. तेरापंथ सामाचारी के अनुसार प्रतिक्रमण कर्ता दैवसिक या रात्रिक में चार, पाक्षिक में बारह, चातुर्मासिक में बीस और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में चालीस लोगस्स का ध्यान करें।
2. किसी भी ध्यान या कायोत्सर्ग को पूर्ण करने के पश्चात एक लोगस्स का प्रकट उच्चारण करें।
3. प्रत्येक कायोत्सर्ग की सम्पन्नता नमस्कारमंत्र के स्मरण पूर्वक करें। 4. छठे आवश्यक के अंत में दो बार 'नमुत्थुणसूत्र' का पाठ बोलते हैं।