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138... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
चातुर्मासिक में चार मास तक तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में एक वर्ष तक कोई प्रत्याख्यान करें। फिर सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान- इन छहों आवश्यकों में जानते - अनजानते जो कोई दोष लगा हो तथा पाठ का उच्चारण करते समय मात्रा, अनुस्वार, अक्षरहीन, अधिक, आगे-पीछे कहा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं - ऐसा कहें।
ऐसा कहकर पूर्वोक्त विधि से दो बार 'शक्र स्तुति' कहें। दूसरी बार 'शक्र स्तुति' बोलते समय 'ठाणं संपत्ताणं' के स्थान पर 'ठाणं संपाविउकामाणं' ऐसा कहें। उसके बाद 'मैं सिद्धों को नमस्कार करता हूँ, अरिहंतो को नमस्कार करता हूँ, वर्तमान आचार्य को नमस्कार करता हूँ' ऐसा कहें। उसके पश्चात पाँच बार नमस्कार मन्त्र का उच्चारण करें। रात्रिक प्रतिक्रमण में पाँच बार नमस्कार सूत्र का पाठ चतुर्विंशतिस्तव की आदि में करें और परमेष्ठी वंदना के पाठ से प्रतिक्रमण समाप्त करें 153
श्रमण की अपेक्षा
तेरापंथ परम्परा के साधु-साध्वियों से सम्बन्धित पाँचों प्रतिक्रमण की विधियाँ एवं उन सभी में कहे जाने वाले सूत्र एक समान हैं। इनमें कायोत्सर्ग आदि के सामान्य अन्तर पूर्ववत जानने चाहिए। इस परम्परा में प्रचलित दैवसिक प्रतिक्रमण विधि निम्न प्रकार है
प्रतिक्रमण प्रारम्भ की पूर्व विधि
सर्वप्रथम गुरु सम्मुख अथवा ईशान कोण में मुँह करके बैठें। फिर ईर्यापथिकसूत्र एवं तस्सउत्तरी सूत्र कहकर एक लोगस्स का ध्यान करें। फिर कायोत्सर्ग पूर्णकर लोगस्ससूत्र का प्रकट उच्चारण करें। फिर पूर्वोक्त मुद्रा में स्थित होकर शक्रस्तव बोलें।
प्रथम आवश्यक— उसके बाद पहले आवश्यक में खड़े होकर नमस्कारसूत्र, सामायिकसूत्र, प्रतिक्रमणसूत्र एवं कायोत्सर्गसूत्र कहकर कायोत्सर्ग में निम्न सूत्रों का चिंतन करें
1. ज्ञानातिचार सूत्र 2. दर्शनातिचारसूत्र 3. चारित्रातिचार सूत्र 4. प्रतिक्रमण सूत्र 5. नमस्कार सूत्र ।
द्वितीय आवश्यक - इस आवश्यक में चतुर्विंशतिस्तव का उच्चारण करें।