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140... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना इसमें पहला सिद्ध भगवान के प्रति और दूसरा अरिहंत के प्रति कहा जाता है।54 दिगम्बर परम्परा में प्रचलित पंच प्रतिक्रमण विधि
दिगम्बर परम्परा में रात्रिक एवं दैवसिक प्रतिक्रमण की विधि एवं उन सभी से सम्बन्धित सूत्रपाठ एक समान हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार दिगम्बर संघ में प्रतिक्रमण की परम्परा साधु-साध्वियों में ही देखी जाती है, गृहस्थ वर्ग में उसका अभाव है। अत: यहाँ श्रमण की अपेक्षा एवं रात्रिक प्रतिक्रमण को मुख्य करके प्रतिक्रमण विधि कही जा रही है___सर्वप्रथम स्वाध्याय प्रतिष्ठापन और स्वाध्याय निष्ठापन विधि करें। उसके बाद 'हुम्बुज श्रमण भक्ति संग्रह' के अनुसार क्रमश: प्रतिज्ञासूत्र, उद्देश्यसूत्र, संकल्पसूत्र, रागपरित्यागसूत्र, पश्चात्तापसूत्र बोलें।
प्रथम आवश्यक- फिर ‘सर्वातिचार विशुद्ध्यर्थं रात्रिक प्रतिक्रमणक्रियायां, कृत दोष निवारणार्थं पूर्वाचार्यानुक्रमेण, सकलकर्मक्षयार्थं भाव पूजावन्दना स्तव समेतं आलोचना सिद्ध भक्ति कायोत्सर्गं कुर्वेऽहं।' ___ इतना पाठ बोलकर नमस्कार करें तथा तीन आवर्त और एक शिरोनति करके निम्न सामायिक दण्डक पढ़ें
1. नमस्कारमन्त्र 2. मंगलसूत्र चत्तारिमंगलं 3. अड्डाईज्जेसु, णमुत्थुणं, करेमि भंते एवं अन्नत्थसूत्र- इन चारों सूत्रों के सम्मिलित स्वरूप को दर्शाने वाला सूत्र।
द्वितीय आवश्यक- तदनन्तर तीन आवर्त और एक शिरोनति करके 27 उच्छ्वास पूर्वक कायोत्सर्ग करें। पश्चात नमस्कार कर तीन आवर्त और एक शिरोनति पूर्वक चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें।
चतुर्थ आवश्यक- तत्पश्चात तीन आवर्त और एक शिरोनति करके क्रमश: निम्न पाठ पढ़ें- 1. मुख्य मंगल 2. सिद्ध भक्ति 3. आलोचना पाठ 4. प्रतिक्रमण पीठिका दण्डक 5. छेदोवट्ठावणं होउ मज्झं प्रतिज्ञासूत्र।
फिर भूमि स्पर्श करते हुए नमस्कार करें। पश्चात तीन आवर्त और एक शिरोनति करके पुनः सामायिक दण्डक पढ़ें और उसकी पूर्णता पर तीन आवर्त एवं एक शिरोनति करके 27 उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करें। ___ पश्चात भूमिस्पर्श करते हुए नमस्कार करें। फिर पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति करके चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें।