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132... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
वत्साकार रचना का यन्त्र इस प्रकार है
आचार्य
वत्साकार मंडली में प्रतिक्रमण करने का हेतु यह है कि इससे तत्सम्बन्धी सर्व क्रियाएँ यथाविधि सम्पन्न की जा सकती है। साधु समुदाय अधिक हो तो वत्स आकार में एक साथ बैठने पर भी एक-दूसरे से दूरी रखी जा सकती है जिससे धर्म क्रिया में सुलभता रहती है। विशेषं तु ज्ञानीगम्यम्। ___मुनियों के सात मंडली होती हैं- 1. सूत्र मंडली 2. अर्थ मंडली 3. भोजन मंडली 4. काल मंडली 5. आवश्यक मंडली 6. स्वाध्याय मंडली और 7. संथारा मंडली।50
साधुविधिप्रकाश के अनुसार उक्त सातों मण्डलियाँ वत्साकार में होनी चाहिए।51 स्थानकवासी परम्परा में प्रचलित पंच प्रतिक्रमण विधि
स्थानकवासी परम्परा में पाँचों प्रतिक्रमण की विधि एवं उसमें बोले जाने वाले सूत्रपाठ समान हैं। मुख्य अन्तर यह है कि सन्ध्याकालीन प्रतिक्रमण में देवसिय, देवसियो, देवसियं आदि शब्द का उच्चारण किया जाता है तथा प्रात:कालीन प्रतिक्रमण में राइय,राईयो, राइयं शब्दों का उच्चारण किया जाता है। इसी तरह पाक्षिक के दिन ‘पक्खियो' आदि, चातुर्मास के दिन ‘चउमासियं' आदि और संवत्सरी के दिन ‘संवच्छरियो' आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं। आलोचना की शुद्धि निमित्त प्रत्येक प्रतिक्रमण में कायोत्सर्ग की संख्या भिन्नभिन्न रहती है। यहाँ दैवसिक प्रतिक्रमण को मुख्य करके प्रतिक्रमण विधि प्रस्तुत करेंगे