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130... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना लोगस्स अथवा अस्सी नवकार का कायोत्सर्ग करें।
• चौमासी प्रायश्चित्त हेतु एक बेला, दो उपवास, चार आयंबिल, छह नीवि, आठ एकासना, सोलह बियासणा अथवा चार हजार गाथाओं का स्वाध्याय करें।
(उपर्युक्त तप चौमासी प्रतिक्रमण करने के पूर्व या उसके बाद चार माह के . भीतर कर लेना चाहिए। इतना तप करने से चातुर्मासिक दोषों की शुद्धि हो जाती है।)
• संबुद्धा क्षमायाचना करते समय सात से अधिक साधु हों तो स्थापनाचार्य के अतिरिक्त, पाँच साधुओं से अब्भुट्ठिओमि सूत्र पूर्वक क्षमायाचना करनी चाहिए।
• संबुद्धा, प्रत्येक एवं समाप्ति खामणा करते वक्त अब्भुट्टिओमि खामणे के पाठ में ‘चउण्हं मासाणं, अट्ठण्हं पक्खाणं, एक सौ बीस राइ-दिवसाणं जं किंचि अपत्तियं.' कहें। ___(यदि पाँच महीने का चौमासा हो तो ‘पंचण्हं मासाणं, दसण्हं पक्खाणं, एक सौ पचास राइ-दिवसाणं' कहना चाहिए।)
तपागच्छ आदि सभी परम्पराओं में चौमासी प्रतिक्रमण की विधि मिलतीजुलती है और वह उपर्युक्त जाननी चाहिए।48
सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि योगशास्त्र, प्रवचनसारोद्धार, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, साधुविधिप्रकाश आदि ग्रन्थों में प्रतिपादित एवं वर्तमान परम्परा में मान्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमण-विधि निम्नोक्त है___सांवत्सरिक प्रतिक्रमण भी पाक्षिक प्रतिक्रमण के समान ही किया जाता है। केवल आलापक, तपदान, क्षमायाचना आदि के सम्बन्ध में किंचित् भेद निम्न रूप से ज्ञातव्य है- • संवत्सरी प्रतिक्रमण करते समय जिस स्थान पर ‘पक्खी' शब्द आता हो वहाँ 'संवच्छरी' शब्द कहे। जैसे कि- 'संवच्छरी वइक्कंतो, जो मे संवच्छरीओ अइयारो कओ, संवच्छरीअं आलोऊं, पडिक्कमे संवच्छरीअं सव्वं' इत्यादि।
• पाक्षिक में बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं संवच्छरी प्रतिक्रमण में चालीस लोगस्स और एक नवकार का अथवा एक सौ साठ नवकार का कायोत्सर्ग करें।