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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...129 पायच्छंदगच्छ- इस परम्परा में पाक्षिक प्रतिक्रमण लगभग तपागच्छ परम्परा के अनुसार किया जाता है कुछ विधि-पाठों में भेद इस प्रकार है1. प्रारम्भ में चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करने हेतु सकलार्हत् स्तोत्र के
स्थान पर 'अर्हतं जगदीश्वरं गुणनिधिं' नाम का चैत्यवंदन बोलते हैं। फिर खड़े होकर ‘स्वर्भूमेर्मातृगर्भे' प्रारम्भ होने वाली महावीर स्वामी की चार
स्तुतियाँ एक साथ कहते हैं। 2. तदनन्तर देववन्दन के रूप में नमुत्थुणं सूत्र ही बोलते हैं। 3. प्रतिक्रमण स्थापना के पूर्व आचार्य आदि तीन को वन्दन करते हैं। 4. पाक्षिक प्रतिक्रमण में प्रवेश करते समय करेमि भंते आदि सूत्र कहकर
कायोत्सर्ग में पंचाचार की आठ गाथाओं का स्मरण करते हैं। 5. मूलगुण-उत्तरगुण की विशुद्धि निमित्त कायोत्सर्ग करने के पूर्व 'पुढवाईसु
पत्तेयं' की 6 गाथा कहते हैं। 6. श्रुतदेवता एवं क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग नहीं करते हैं। 7. सज्झाय के स्थान पर संबोधसत्तरी की पाँच गाथा बोलते हैं तथा अन्त में
बड़ी शांति नहीं कहते हैं। शेष विधि लगभग तपागच्छ के समान है।46 त्रिस्तुतिक गच्छ- इस परम्परा में श्रुतदेवता आदि तीन की स्तुतियाँ एवं सज्झाय करते समय संसारदावानल की चौथी स्तुति ‘आमूलालोलधूली'. नहीं बोलते हैं। शेष सम्पूर्ण-विधि तपागच्छ परम्परा के अनुसार ही करते हैं।47
चातुर्मासिक प्रतिक्रमण विधि योगशास्त्र, प्रवचनसारोद्धार, सुबोधासामाचारी, तिलकाचार्य-सामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, साधुविधिप्रकाश आदि में वर्णित चातुर्मासिक प्रतिक्रमण विधि इस प्रकार है
चौमासी प्रतिक्रमण करते समय सम्पूर्ण विधि पाक्षिक प्रतिक्रमण के समान ही करते हैं लेकिन कायोत्सर्ग, क्षमायाचना, तपदान आदि के विषय में सामान्य अन्तर निम्न प्रकार है
• प्रतिक्रमण इच्छुक यह ध्यान रखें कि जिस स्थान पर 'पक्खी' शब्द आता हो उस जगह 'चौमासी' शब्द कहें, जैसे कि- “पडिक्कमे चउमासिअं सव्वं, चउमासी वइक्कंता, जो में चउमासिओ अइआरो' इत्यादि।
• पाक्षिक में बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं उस जगह बीस