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________________ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...119 कालो गोयरचरिया थंडिल्ला वत्थ पत्त पडिलेहा । संभरउ सो साहू, जस्स वि जं किंचिणुवउत्तं ।। आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार प्रतिक्रमण के पूर्व एक मुनि के द्वारा उक्त गाथा बुलवाकर यह उद्घोषणा की जाती है कि दैवसिक प्रतिक्रमण का समय हो चुका है, किसी भी श्रमण की दिन सम्बन्धी स्थंडिल प्रेक्षा, वस्त्रादि प्रतिलेखना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण आदि कोई भी क्रिया शेष रह गई हो,तो वह उसके प्रति उपयोगवान बने तथा शेष रही क्रिया स्मृति में आ जाये तो उसे पूर्ण कर लेइस प्रकार दिवस सम्बन्धी आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न कर सकें तद्हेतु यह गाथा बोली जाती है। वर्तमान में यह उद्देश्य नहींवत रह गया है। 3. गृहस्थ दूसरे आवश्यक के अन्तर्गत दिनकृत या पंचाचार सम्बन्धी अतिचारों का चिन्तन अथवा आठ नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करते हैं वहाँ साधु-साध्वी 'सयणासणन्न' गाथा का अर्थ सहित एक बार अथवा मूल पाठ का तीन बार चिन्तन करते हैं। 4. गृहस्थ चौथे आवश्यक में 'वंदित्तु सूत्र' बोलते हैं वहाँ साधु-साध्वी 'पगामसिज्झाय सूत्र' बोलते हैं। 5. गृहस्थ छह आवश्यक पूर्ण होने के पश्चात, चउक्कसाय का चैत्यवन्दन और शांतिपाठ बोलते हैं जबकि साधु-साध्वी रात्रि में संथारा पौरूषी की विधि करते समय चउक्कसाय का चैत्यवन्दन करते हैं। शेष विधि एवं पाठ लगभग समान है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक की अन्य परम्पराओं में दैवसिक प्रतिक्रमण विधि तपागच्छ- इस परम्परा में दैवसिक प्रतिक्रमण खरतर परम्परा की विधि के अनुसार ही किया जाता है किन्तु कुछ सूत्र-पाठों एवं प्रक्षिप्त विधि में इस प्रकार अन्तर है1. यहाँ 'जयतिहुअण स्तोत्र' के स्थान पर 'सकल कुशलवल्ली' एवं दूज आदि तिथि के अनुसार चैत्यवन्दन बोलते हैं। 2. जयमहायस का पाठ नहीं बोलते हैं। 3. वंदित्तुसूत्र के पूर्व नवकार मन्त्र और करेमिभंते सूत्र एक बार बोलते हैं। आचार्य मिश्र, उपाध्याय मिश्रं, वर्तमान मिश्र, सर्वसाधु मिश्रं के स्थान पर
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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