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________________ 118... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 4. छह आवश्यक की क्रिया पूर्ण होने के पश्चात आचार्यादि तीन को ही वन्दन करना। 5. दोनों हाथ जोड़ते हुए एवं भूमि पर मस्तक रखते हए प्रतिक्रमण की स्थापना करना। वर्तमान में दायें हाथ को मुट्ठी रूप में स्थापित करने की परम्परा परवर्ती मालूम होती है। 6. तीसरे एवं छठे आवश्यक में प्रवेश करने हेतु मौन पूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करना इत्यादि सामाचारियों का उल्लेख सर्वप्रथम इसी ग्रन्थ में प्राप्त होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रतिक्रमण की उपविधियाँ कालक्रम से सम्मिलित हुई हैं जिन्हें आज मुख्य विधि के रूप में भी मान लिया जाता है।27 यहाँ यह अवगत कर लेना भी परमावश्यक है कि गृहस्थ एवं साधु दोनों की दैवसिक प्रतिक्रमण विधि लगभग एक समान है यद्यपि प्रतिक्रमण प्रारम्भ के पूर्व की और षडावश्यक क्रिया के बाद की विधियों एवं सूत्र पाठों को लेकर क्वचित भेद इस प्रकार हैं1. प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने से पूर्व गृहस्थ सामायिक ग्रहण करता है और उत्कृष्ट (द्वादशावर्त) वन्दन पूर्वक दिवसचरिम चौविहार आदि के प्रत्याख्यान लेता है वैसा मुनि के लिए नहीं है, क्योंकि साधु-साध्वी के यावज्जीवन के लिए सामायिक होती हैं अत: उन्हें पृथक से सामायिक लेने की जरूरत नहीं होती तथा चौविहार आदि प्रत्याख्यान सायंकालीन प्रतिलेखना विधि के अन्त में करने का आचार है। 2. साधु-साध्वी दैवसिक प्रतिक्रमण करने से पूर्व दिवस सम्बन्धी आहार आदि क्रियाओं में लगे दोषों की आलोचना एवं उसके प्रति जागरूक रहने ... के प्रयोजन से निम्न विधि करते हैं एक खमासमणसूत्र से वन्दन कर 'इच्छा. संदि. भगवन्! गोयरचरियाई पडिक्कम-इच्छं' कहे। पुनः एक खमासमणसूत्र से वंदन कर 'इच्छा. संदि. भगवन्! गोअर चरियाइ पडिक्कमणत्थं करेमि काउस्सग्गं' एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर एवं प्रकट में एक नमस्कार मन्त्र बोलकर निम्न गाथा बोलें
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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