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120... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
भगवानहं, आचार्यहं, उपाध्यायहं, सर्वसाधुहं ऐसा कहकर वन्दन करते हैं। 4. श्रुतदेवता एवं क्षेत्रदेवता के कायोत्सर्ग में क्रमशः पुरुष वर्ग सुअदेवया
भगवई' एवं श्राविकावर्ग ‘कमलदल विपुल नयना' की स्तुति बोलते हैं तथा दूसरे में पुरुष वर्ग 'जिसे खित्ते' एवं श्राविका वर्ग 'यस्या क्षेत्र' की
स्तुति बोलते हैं। 5. इसमें प्रक्षिप्त विधि के अन्तर्गत 'खुद्दोपद्दव उड्डावणी' का कायोत्सर्ग न
करके सज्झाय के पश्चात दुःखक्षय-कर्मक्षय निमित्त चार लोगस्स का __ कायोत्सर्ग करते हैं। 6. इस परम्परा में श्रीसेढ़ी का चैत्यवंदन और गुरुदेव का कायोत्सर्ग नहीं
करते हैं। 7. इस आम्नाय में लघुशांति पाठ पहले और चउक्कसाय का चैत्यवंदन
बाद में करते हैं। शेष क्रिया विधि लगभग समान है।28
अचलगच्छ- इस परम्परा की मान्यतानुसार खण्ड-11 के अध्याय-2 में कही गई विधि पूर्वक सामायिक ग्रहण करना, प्रतिक्रमण का प्रथम आवश्यक है। सामायिक लेते समय ईर्यापथ प्रतिक्रमण में लोगस्स सूत्र बोलना दूसरा आवश्यक है। तीसरे आवश्यक में आदेश पूर्वक उत्तरीय वस्त्र का छेड़ा या रूमाल की 50 बोल पूर्वक प्रतिलेखना कर गुरु को द्वादशावर्त वंदन करते हैं
और आत्म साक्षी से चउविहार आदि का प्रत्याख्यान लेते हैं। चौथे आवश्यक में अनुमति पूर्वक खड़े-खड़े एक नवकार मन्त्र गिनकर लघु अतिचार पाठ बोलते हैं। पाँचवें आवश्यक में गुर्वानुमति पूर्वक योगमुद्रा में ‘जय-जय महाप्रभु' का
चैत्यवंदन, अष्टोत्तरी अथवा अन्य चार स्तवन कहते हैं। फिर खड़े होकर उवसग्गहरं और जं किंचि सूत्र तथा योग मुद्रा में नमुत्थुणसूत्र बोलते हैं। ___ तदनन्तर एक खमासमण पूर्वक घुटनों के बल स्थित होकर गुरु को वंदन करते हैं। उसके बाद दो आदेश पूर्वक दशवैकालिक आदि आगम सूत्र की सज्झाय बोलते हैं। तदनु दैवसिक प्रायश्चित्त की विशुद्धि निमित्त चार लोगस्स का कायोत्सर्ग
और अभिभव अशेष दुक्खखय कम्मक्खय निमित्त पाँच लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं। छठे आवश्यक में गुरु को द्वादशावत वंदन कर दिवसचरिम प्रत्याख्यान ग्रहण करते हैं। फिर गृहस्थजन सामायिक पूर्ण करते हैं।29