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__ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...115 प्रायश्चित्त विशुद्धि कायोत्सर्ग- तत्पश्चात एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! देवसियपायच्छित्त विसोहणत्थं काउस्सग्गं करूँ? इच्छं' कहकर पुनः 'देवसिय पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्स अथवा सोलह नवकार का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें। उसके बाद गीतार्थ आचरणा वश एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! खुद्दोपद्दव ओहडावणत्थं काउस्सग्गं करूं? इच्छं' कहकर पुनः 'खुद्दोपद्दव ओहडावणत्थं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक अन्नत्थसूत्र कहकर चार लोगस्स अथवा सोलह नवकार का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र
बोलें।
सज्झाय- तत्पश्चात शिष्य या गृहस्थ एक खमासमण देकर कहें'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झायं संदिसावेमि? इच्छं' पुनः दूसरा खमासमण देकर कहें- ‘इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झायं करेमि?' इस प्रकार सज्झाय बोलने की अनुमति प्राप्त कर साधु-साध्वी हों तो एक नवकार मन्त्र पूर्वक आगम सूत्र सम्बन्धी स्वाध्याय करें और पुनः एक नवकार मन्त्र बोलें।
वर्तमान में साधु-साध्वी लगभग महापुरुषों, सतियों एवं औपदेशिक पद से सम्बन्धित सज्झाय बोलते हैं तथा गृहस्थ स्वाध्याय के रूप में तीन नवकार मन्त्र कहते हैं।
चैत्यवन्दन- तदनन्तर विघ्नों को दूर करने के लिए योगमुद्रा में श्री सेढीतटिनीतटे०, नमुत्थुणं०, जावंति चेइआइं०, जावंत केविसाहू०, नमोऽर्हत्०, उवसग्गहरं०, मुक्ताशुक्ति मुद्रा में जयवीयराय आदि सूत्र बोलें। उसके बाद एक खमासमण पूर्वक मस्तक झुकाकर एवं मुख के आगे मुखवस्त्रिका रखकर 'सिरिथंभणट्ठियपास सामिणो' पाठ की दो गाथाएँ बोलें और वंदणवत्तियाए सूत्र एवं अन्नत्थसूत्र कहकर चार लोगस्स अथवा सोलह नवकार का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र पढ़ें।
गुरुदेव कायोत्सर्ग- उसके बाद उपकारी गुरुदेवों की आराधना निमित्त एक खमासमण देकर 'श्री चौरासी गच्छ श्रृंगारहार जंगम युग प्रधान भट्टारक श्री जिनदत्तसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, जिनकुशलसूरि, अकबरप्रतिबोधक जिनचन्द्रसूरि आराधवा निमित्तं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्स अथवा सोलह नवकार का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र