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________________ 114... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना छठा आवश्यक- तदनन्तर संडाशक स्थानों की प्रमार्जना करते हुए उत्कटासन मुद्रा में विधियुक्त मुखवस्त्रिका और शरीर की प्रतिलेखना करें। फिर गुरु को द्वादशावर्त पूर्वक वन्दन करें। उसके बाद यदि प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने से पूर्व प्रत्याख्यान न किया हो और सूर्यास्त होने वाला हो तो पहले प्रत्याख्यान करें। फिर प्रचलित परम्परानुसार 'सामाइयं, चउव्विसत्थो, वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं'- इन छह आवश्यक क्रियाओं को करते हुए अविधि हुई हो तो मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं, ऐसा कहें। ___मंगल स्तुति- फिर 'इच्छामो अणुसडिं' बोलकर एवं बायें घुटने के बल स्थित होकर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक साधु एवं श्रावक 'नमोस्तु वर्धमानाय' की तीन गाथाएँ बोलें। यहाँ गुरु द्वारा एक स्तुति बोल दी जाए उसके पश्चात शेष सभीजन मस्तक पर अंजलि करके 'नमो खमासमणाणं' शब्द बोलें, फिर जिसमें अक्षर और स्वर बढ़ते हुए हों वैसी पूर्वोक्त तीन स्तुतियाँ कहें। यहाँ परम्परानुसार साध्वीजी एवं श्राविकाएँ संसारदावानल की तीन गाथाएँ बोलती हैं। उसके बाद नमुत्थुणसूत्र पढ़ें। फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! स्तवन भणुं? इच्छं' कह 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक मधुर स्वर से ग्यारह गाथाओं से अधिक एक सौ आठ श्लोक तक गुणगर्भित स्तवन बोलें। अन्य सभी हाथ जोड़े हुए सावधान चित्त से उसे सुनें। वर्तमान में कम से कम 11 गाथा का स्तवन बोलने की परिपाटी है। ___ तत्पश्चात एक-एक खमासमण देकर क्रमश: आचार्य मिश्र, उपाध्याय मिश्रं, सर्वसाधून मिश्रं कहकर इन तीनों को वन्दन करें। दैवसिक प्रतिक्रमण में प्रक्षिप्त की गई विधि इसके पश्चात कुछ परम्पराओं में स्तोत्र की समाप्ति के अनन्तर निम्न गाथा भी बोलते हैं वरकनकशंखविद्दुम, मरकतघनसन्निभं विगत मोहं। सप्ततिशतं जिनानां, समिर पूजितं वन्दे ।। तदनन्तर कुछ गृहस्थ दाहिने हाथ को चरवले पर रखकर और मुखवस्त्रिका को बायें हाथ से मुँह के आगे रखकर अड्डाइज्जेसु का पाठ बोलते हैं। किन्तु प्रतिक्रमण सम्बन्धी विधि ग्रन्थों में इस विषयक कोई उल्लेख नहीं है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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