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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...113 • उसके बाद स्वकृत अपराधों की क्षमायाचना करने के लिए स्थापनाचार्य गुरु को द्वादशावर्त वन्दन करें।
• उसके बाद गुरु या ज्येष्ठ साधु अब्भुट्ठिओमि सूत्र बोलकर स्थापनाचार्य गुरु से क्षमायाचना करें। तदनन्तर ज्येष्ठ शिष्य अब्भुट्ठिओमि सूत्र द्वारा उपस्थित गुरु से क्षमायाचना करें।
यहाँ इतना विशेष है कि पाँच से अधिक साध हों तो गुरु सहित तीन से क्षमायाचना करें तथा सहवर्ती साधुओं की अपेक्षा स्थापनाचार्य के अतिरिक्त तीन मुनियों से क्षमायाचना करें, यह पूर्वाचार्य विहित सामाचारी है।
• उसके पश्चात पुन: स्थापनाचार्यजी को द्वादश आवर्त पूर्वक दो बार वन्दन करें।
पांचवाँ आवश्यक- तदनन्तर खड़े होकर गृहस्थ आयरिय उवज्झाय पाठ की तीन गाथा बोलें। गच्छ-परम्पराएँ होने से कुछ साधु भी यह सूत्र बोलते हैं। किन्तु वर्तमान परम्परा में लगभग सभी गच्छों के साधु-साध्वी यह सूत्र बोलते हैं।
. उसके बाद करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी, अन्नत्थसूत्र कहकर चारित्राचार की शुद्धि निमित्त दो लोगस्स अथवा आठ नवकार का कायोत्सर्ग
• फिर पूर्णकर दर्शनाचार की शुद्धि निमित्त लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्स या चार नवकार का कायोत्सर्ग करें।
• फिर पूर्णकर ज्ञानाचार की शुद्धि निमित्त पुक्खरवरदी, सुअस्स भगवओ, अन्नत्थसूत्र कहकर एक लोगस्स या चार नवकार का कायोत्सर्ग करें।
• फिर पूर्णकर ज्ञान आदि का निरतिचार आचरण करने से परमात्मा रूपी फल को प्राप्त हुए सिद्धात्माओं को वन्दन करने हेतु सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र बोलें।
• उसके बाद श्रुतसमृद्धि के लिए श्रुतदेवता की आराधना निमित्त अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। फिर गुरु भगवन्त 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक ‘सुवर्णशालिनी' स्तुति कहें, शेष सभी कायोत्सर्ग मुद्रा में ही स्तुति को सुनें और उसके बाद कायोत्सर्ग पूर्ण करें। फिर क्षेत्र देवता की आराधना हेतु अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। फिर उसे पूर्णकर गुरु भगवन्त ‘नमोऽर्हत्' पूर्वक ‘यासां क्षेत्रगता:' स्तुति पढ़ें। फिर ऊर्ध्वस्थित (खड़ी) मुद्रा में ही एक नवकार मन्त्र का उच्चारण करें।