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________________ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ... 111 नियम प्रत्येक कायोत्सर्ग के अन्त में जानना चाहिए । • तदनन्तर लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थसूत्र कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें, पूर्णकर दूसरी स्तुति कहें। • उसके बाद पुक्खरवरदी, सुअस्स भगवओ, अन्नत्थसूत्र कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें, पूर्णकर तीसरी स्तुति कहें। • तदनन्तर सिद्धाणं बुद्धाणं, वैयावच्चगराणं, अन्नत्थसूत्र कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें, पूर्णकर 'नमोऽर्हत्०' पूर्वक चौथी स्तुति बोलें। उसके बाद योगमुद्रा में बैठकर नमुत्थुणसूत्र कहे। प्रतिक्रमण स्थापना - तत्पश्चात चार खमासमण के द्वारा प्रतिक्रमण की स्थापना करें अर्थात प्रतिक्रमण में उपस्थित होने का संकल्प करें। यहाँ प्रथम खमासमण से- आचार्य मिश्र, द्वितीय खमासमण से - उपाध्याय मिश्र, तृतीय खमासमण से वर्तमान गुरूं मिश्रं तथा चतुर्थ खमासमण से सर्वसाधू मिश्रं कह कर आचार्य आदि चारों को वन्दन करें। • तदनु हेतुगर्भ (पृ. 4) एवं धर्मसंग्रह टीका ( भा. 2, पृ. 249) के अनुसार एक ज्येष्ठ श्रावक 'इच्छकारि समस्त श्रावकों को वंदूं ऐसा बोलें। वर्तमान की कुछ परम्पराओं में यह वाक्य आज भी बोला जाता है। • उसके बाद घुटनों के बल स्थित होकर, मुखवस्त्रिका को मुख के आगे धारणकर एवं मस्तक झुकाकर 'सव्वस्स वि देवसिय सूत्र' बोलें, किन्तु 'इच्छाकारेण संदिसह इच्छं' इतना पद न कहें। * वर्तमान में मुँहपत्ति पूर्वक बायें हाथ को मुख के आगे एवं दायें हाथ को चरवला पर रखते हुए 'सव्वस्सवि सूत्र' बोलते हैं। यह परवर्ती परम्परा मालूम होती है। पहला एवं दूसरा आवश्यक - तदनन्तर खड़े होकर करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्सउत्तरी, अन्नत्थसूत्र बोलकर चारित्राचार की विशुद्धि के लिए दोनों भुजाओं को फैलाकर, कोहनियों को चोलपट्ट या धोती से सटाते हुए, 19 दोषों से रहित होकर कायोत्सर्ग करें। • इस कायोत्सर्ग में मुनि 'सयणा सणन्न' इस गाथा के आधार पर प्राभातिक प्रतिलेखन से लेकर दिनकृत सर्व अतिचारों का चिन्तन करें और उन्हें मन में धारण करें। 备 आचार्य हरिभद्रसूरि (पंचवस्तुक, 450 ) ने इस सम्बन्ध में कहा है कि
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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