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110... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना प्रतिक्रमण से पूर्व की क्रिया
सन्ध्याकालीन प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने से पूर्व साधु-साध्वी चौबीस मांडला (स्थंडिल प्रतिलेखन) विधि एवं गोचरचर्या प्रतिक्रमण विधि सम्पन्न कर लें। गृहस्थ सन्ध्याकालीन सामायिक ग्रहण करें।
दिवस चरिम प्रत्याख्यान- यदि उपवास हों और पानी पिया हो, तो एक खमासमणसूत्र से वन्दन करके कहे- 'इच्छा० संदिसह भगवन्! मुहपत्ति पडिलेहं? इच्छं' कह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। यदि एकासन आदि हो या खुले मुँह भोजन किया हो, तो मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करने के पश्चात दो बार द्वादशावर्त वंदन करें। फिर खड़े होकर 'इच्छकारी भगवन्! पसाय करी पच्चक्खाण कराओ जी' ऐसा कहें। यदि इस समय गुरु हो तो गुरुमुख से अथवा अनुभवी ज्येष्ठ व्यक्ति के मुख से अथवा स्वयं ही दिवस चरिम का पाठ बोलकर प्रत्याख्यान ग्रहण करें।
उसके बाद उपस्थित मुनिगण बड़े-छोटे के क्रम से दो खमासमण पूर्वक सुखपृच्छा करते हुए प्रतिक्रमण मण्डली में आकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें।
गुरु महाराज का योग हो तो शिष्यों एवं गृहस्थों को उनके साथ ही प्रतिक्रमण करना चाहिए। आचार्य हरिभद्रसूरि ने सामूहिक प्रतिक्रमण पर बल देते हुए कहा है कि गुरु उपदेश आदि कार्यों से निवृत्त हो तो सभी शिष्य गुरु के साथ ही आवश्यक करें। यदि गुरु निवृत्त न हो तो बाद में भी प्रतिक्रमण मंडली के स्थान पर आकर ही प्रतिक्रमण करें।16 यहाँ निर्जरा की इच्छा रखने वाले अशक्त, बाल, वृद्ध या रोगी साधु भी मंडली में आकर ही प्रतिक्रमण करें। हाँ! शक्ति न हो तो बैठकर भी कर सकते हैं।17
देववन्दन- इसी सामाचारी के अनुसार मुनि या गृहस्थ गुरु महाराज के साथ अथवा एकाकी एक खमासमण पूर्वक बायां घुटना ऊँचा करके कहें'इच्छा. संदि. भगवन्! चैत्यवन्दन करूँ?' गुरु- करेह, शिष्य- इच्छं कहे। उसके बाद 'जयतिहुअण स्तोत्र' की पाँच गाथा योग मुद्रा में और 'जयमहायस' पाठ मुक्ताशुक्ति मुद्रा में बोलें। • पुनः योगमुद्रा में नमुत्थुणसूत्र कहने के पश्चात खड़े होकर अरिहंतचेइयाणं सूत्र एवं अन्नत्थ सूत्र कहकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर 'नमोऽर्हत्०' पूर्वक एक साधु प्रथम स्तुति कहें, शेष कायोत्सर्ग मुद्रा में सुनें तथा स्तुति के अन्त में सभी 'नमो अरिहंताणं' बोलें। यह