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________________ 108... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना उपर्युक्त आठ गाथाएँ वस्तुत: पंचाचार से सम्बन्धित हैं, किन्तु अतिचारों का चिंतन करने में परम हेतुभूत होने से अतिचार की गाथाएँ मानी जाती है। 6. खरतर परम्परा में आलोचना सूत्रों के अन्तर्गत सातलाख, अठारहपापस्थान एवं ज्ञान दर्शन चारित्र- ये तीन पाठ कहे जाते हैं वहाँ तपागच्छ सम्प्रदाय में सात लाख और अठारह पापस्थान- ये दो पाठ ही बोले जाते हैं। 7. खरतर आम्नाय में वंदित्तुसूत्र से पूर्व तीन-तीन बार नमस्कार मन्त्र एवं करेमि भंते सूत्र कहा जाता है वहाँ तपागच्छ परम्परा में नमस्कार मन्त्र एवं करेमि भंते सूत्र एक-एक बार पढ़ा जाता है। यह नियम पाक्षिक आदि सभी प्रतिक्रमण विधियों में जानना चाहिए। 8. खरतर परम्परा के अनुसार कायोत्सर्ग आवश्यक में भगवान महावीर के छह मासी तप का चिंतन अथवा 24 नमस्कार मन्त्र का चिंतन किया जाता है वहाँ तपागच्छ परम्परा में तपचिंतन अथवा सोलह नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हैं। 9. खरतर परम्परा में छठे आवश्यक के अनन्तर 'सद्भक्त्या देवलोके' ऐसा संस्कृत स्तोत्र बोला जाता है वहाँ तपागच्छ परम्परा में सकल तीर्थों को वन्दना करने निमित्त 'सकलतीर्थ वन्दूं कर जोड़' ऐसा हिन्दी पाठ कहा जाता है। 10. खरतर आम्नाय में छह आवश्यक पूर्ण होने के पश्चात मंगल स्तुति के रूप में श्रावक ‘परसमयतिमिर०' एवं श्राविकाएँ “संसारदावानल०' बोलती हैं वहाँ तपागच्छ परम्परा में श्रावक 'विशाललोचन०' और श्राविकाएँ 'संसारदावानल०' बोलती हैं। 11. खरतर परम्परा में छह आवश्यक रूप प्रतिक्रमण क्रिया पूर्ण होने के बाद अड्डाइज्जेसु पाठ बोलने की सामाचारी नहीं है, जबकि तपागच्छ सामाचारी के अनुसार यह पाठ बोला जाता है। शेष विधि लगभग समान है।12 अचलगच्छ- इस परम्परा में रात्रिक प्रतिक्रमण की दूसरे आवश्यक तक की विधि इसी आम्नाय में प्रचलित दैवसिक प्रतिक्रमण के समान जाननी चाहिए। • उसके बाद एक खमासमण पूर्वक खड़े होकर कहते हैं कि
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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