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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...107 नमस्कारमन्त्र और साधु 'धम्मोमंगल' की 5 गाथा बोलते हैं जबकि तपागच्छ परम्परा में गृहस्थ ‘मन्नह जिणाणं' सज्झाय और साधु 'धम्मो
मंगल' की ही 5 गाथा कहते हैं। 3. खरतर परम्परा के अनुसार प्रतिक्रमण की स्थापना करते समय निम्न चार
को वन्दन किया जाता है- 1. आचार्य मिश्रं 2. उपाध्याय मिश्रं 3. वर्तमान मिश्रं 4. सर्वसाधु मिश्रृं। जबकि तपागच्छ परम्परा में निम्नोक्त चार को वन्दन करते हैं1. भगवानहम् 2. आचार्यहम् 3. उपाध्यायहम् और 4. सर्वसाधुहम्।
प्रतिक्रमण विधियों में यह अन्तर जानना चाहिए। 4. खरतर आम्नाय में चारित्राचार की शुद्धि निमित्त किये जाने वाले
कायोत्सर्ग में अतिचारों का चिन्तन करते हैं अथवा आठ नमस्कार मन्त्र का ध्यान करते हैं वहाँ तपागच्छ आम्नाय में पंचाचार विषयक निम्नोक्त आठ गाथाओं का स्मरण किया जाता है
नाणम्मि सणम्मि अ, चरणम्मि तवम्मि तह य वीरियम्मि । आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ ।।1।। काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे। वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्ठविहो नाण मायारो ।।2।। निस्संकिय निक्कंखिअ, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उववह-थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ।।3।। पणिहाण जोग-जुत्तो, पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायव्यो ।।4।। बारसविहम्मि वि तवे, सन्भिंतर-बाहिरे कुसल-दिढे। अगिलाइ अणाजीवी, नायव्वो सो तवायारो ।।5।। अणसणमृणोअरिआ, वित्ती संखेवणं रस च्चाओ। काय-किलेसो संलीणया य, बज्झो तवो होइ ।।6।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ झाणं उस्सग्गो विअ, अन्भिंतरओ तवो होइ ।।7।। अणिगूहिअ बल वीरिओ,परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो । जुंजइ अ जहाथाम, नायव्वो वीरिआयारो।।8।।