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________________ 106... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 2. आयरिय उवज्झाय का पाठ गृहस्थ के लिए है। साधु के सम्बन्ध में वैकल्पिक कथन करते हुए कहा गया है कि गच्छ परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं साधु भी ये तीन गाथाएँ बोलते हैं। इस प्रकार मुनियों के लिए यह पाठ आवश्यक नहीं माना है। 3. तप चिंतन सम्बन्धी कायोत्सर्ग में छह मासिक एवं वर्धमान तप दोनों के सम्बन्ध में एक बार चिन्तन करने का उल्लेख है। 10 शेष विधि प्रचलित विधि के सदृश ही है । तत्पश्चात क्षमाकल्याणोपाध्याय विरचित साधुविधिप्रकाश में कही गई रात्रिक प्रतिक्रमण की विधि वर्तमान प्रचलित विधि के समान ही है । 11 वर्तमान में रात्रिक प्रतिक्रमण करते समय प्रारम्भ में 'जयउ सामिय' का चैत्यवन्दन करते हैं, उसके बाद सज्झाय बोलते हैं, प्रत्याख्यान से पूर्व सकल तीर्थों को वंदन करते हैं, अन्त में सीमंधरस्वामी एवं सिद्धाचलजी का चैत्यवंदन करते हैं। इन क्रियाओं एवं पाठों का उल्लेख सर्वप्रथम इसी प्रति में किया गया है। तदनुसार कहा जा सकता है कि प्रचलित प्रतिक्रमण विधि पूर्ववर्ती ग्रन्थों का अनुसरण करते हुए साधुविधिप्रकाश के आधार पर की जाती है। गृहस्थ एवं साधु-साध्वी की रात्रिक प्रतिक्रमण विधि प्राय: समान है, सूत्र पाठों में कुछ भिन्नताएँ इस प्रकार है केवल 1. दोनों में करेमिभंते सूत्र एवं इच्छामिठामि सूत्र के पाठ भिन्न हैं । 2. गृहस्थ चतुर्थ आवश्यक में वंदित्तुसूत्र बोलता है और साधु-साध्वी 'पगामसिज्झाय सूत्र' बोलते हैं। 3. छट्टे आवश्यक के अनन्तर श्रावक वर्ग 'परसमयतिमिर' और श्राविकाएँ 'संसारदावानल' की स्तुति बोलती हैं तथा साधु-साध्वी 'परसमय तिमिर ' की स्तुति बोलते हैं। शेष पाठ एवं विधि में लगभग समानता है । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक की अन्य परम्पराओं में रात्रिक प्रतिक्रमण तपागच्छ— इस परम्परा में रात्रिक प्रतिक्रमण की विधि पूर्व कथित खरतर गच्छ परम्परा के अनुसार ही है। कुछ सूत्र पाठों में इस प्रकार भेद हैं 1. प्रारम्भ में 'जयउसामिय' के स्थान पर 'जगचिंतामणि' का पाठ बोलते हैं। 2. खरतर परम्परा में चैत्यवन्दन के बाद गृहस्थ सज्झाय के रूप में तीन
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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