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________________ 100... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना वंदणवत्तियाए, अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग में रात्रिकृत अतिचारों का अनुक्रम से चिंतन करें। यहाँ साधु-साध्वी साधुविधिप्रकाश (पृ. 2) के अनुसार निम्न गाथा का एक या तीन बार अर्थ सहित चिंतन करें। सयणा सणऽन्न पाणे, चेइ जड सिज्ज काय उच्चारे । समिइ भावणा गुत्ति, वितहायऽरणे य अइयारो।। वर्तमान परम्परा में आठ नवकार गिनने की प्रवृत्ति है। कायोत्सर्ग पूर्णकर सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र पढ़ें। तृतीय वन्दन आवश्यक- तदनन्तर शरीर प्रमार्जना करते हुए उत्कटासन में बैठे और तीसरे आवश्यक के परिलापन हेतु 50 बोल पूर्वक मुखवस्त्रिका एवं शरीर की प्रतिलेखना करें। फिर स्थापनाचार्य के आगे दो बार द्वादशावर्त वन्दन करें। __चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक- उसके बाद खड़े होकर 'इच्छा. संदि. भगवन् राइयं आलोउं?' गुरु कहे- 'आलोएह'। शिष्य- इच्छं आलोएमि जो मे राइयो सूत्र पढ़कर पूर्व कायोत्सर्ग में धारण किए गए रात्रिक अतिचारों की गुरु के समक्ष आलोचना करें। . उसके बाद साधुविधिप्रकाश (पृ. 5) एवं परवर्ती परम्परानुसार साधु-साध्वी संथारा उवट्टणकी पाठ तथा गृहस्थ सात लाख पृथ्वीकाय, अठारह पापस्थानक, ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि आलोचना पाठ बोलें। • फिर 'सव्वस्सवि राइय दुचिंतिय दुब्भासिय दुचिट्ठिय.' इतना कहने के बाद 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्!' यह वाक्य बोलकर आलोचित अतिचारों का प्रायश्चित्त मांगे। तब गुरु 'पडिक्कमेह' शब्द कहते हुए प्रायश्चित्त देते हैं। उसके बाद शिष्य 'इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं' कहें। . तदनन्तर संडाशक स्थानों की प्रमार्जना कर दोनों पंजों के बल बैठते हुए दाहिने घुटने को ऊँचा करें। फिर रजोहरण या चरवला और मुखवस्त्रिका को दोनों हाथों से मुख के आगे रखकर शिष्य कहें- भगवन्! सूत्र कड्डे? गुरु कहेकड्डेह। तब शिष्य- इच्छं कहे। • साधु-साध्वी द्वारा 'श्रमणसूत्र संदिसाहूं' 'श्रमणसूत्र भणूं' तथा गृहस्थ के द्वारा 'श्रावक सूत्र संदिसाहूं' 'श्रावक सूत्र भणूं- ऐसे दो आदेश लेने की परिपाटी भी है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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