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प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ...99 अथवा सोलह नवकार का कायोत्सर्ग करें। फिर 'नमो अरिहंताणं' पूर्वक कायोत्सर्ग पारकर प्रकट में लोगस्स सूत्र कहें।
• तदनन्तर एक खमासमण देकर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवन्दन करूँ? गुरु- करेह। शिष्य- इच्छं कहकर एवं बायां घुटना ऊँचा करके जयउ सामियः, जं किंचिः , नमुत्थुणं., जावंति चेइआई., जावंत केविसाहू., नमोऽर्हत्., उवसग्गहरं. और जयवीयराय. तक सूत्र पाठ बोलें
• उसके बाद एक खमासमण देकर शिष्य कहे- 'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय संदिसाउं? गुरु- संदिसावेह। शिष्य- इच्छं कहे। पुन: दूसरा खमासमण देकर कहे- 'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय करूं? गुरु- करेह। शिष्य- इच्छं कहकर यदि गुरु हो तो एक नवकार मन्त्र बोलकर 'धम्मोमंगल मुक्किट्ठ' की पाँच गाथा और फिर से एक नवकार मन्त्र कहें।
तदनन्तर प्रतिक्रमण करने का अभी समय न हुआ हो तो ध्यान, जाप अथवा स्वाध्याय करें।
प्रथम सामायिक एवं द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक- प्रतिक्रमण का समय होने पर चार खमासमणसूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण की स्थापना करें। पहला खमासमण देकर कहें- आचार्य मिश्रं, दूसरा खमासमण देकर कहेंउपाध्याय मिश्रं, तीसरा खमासमण देकर कहें- वर्तमान गुरु मिश्रं, चौथा खमासमण देकर कहें- सर्व साधु मिश्रउसके बाद घुटने के सहारे मस्तक झुकाकर, दाहिनी हथेली को मुट्ठी रूप में रजोहरण या चरवले पर रखें तथा बायें हाथ में मुहपत्ति ग्रहण कर उसे मुख के आगे रखते हुए 'सव्वस्स वि राइय सूत्र' बोलें। परन्तु इस सूत्र के आगे ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! इच्छं' इतना पद नहीं बोलना चाहिए।
• उसके बाद बायां घुटना ऊँचा करके ‘नमुत्थुणसूत्र' कहे। • फिर खड़े होकर चारित्राचार की शुद्धि के लिए करेमि भंते, इच्छामिठामि, तस्स उत्तरी,
अन्नत्थसूत्र कहकर एक लोगस्स अथवा चार नवकार का कायोत्सर्ग करें। . फिर कायोत्सर्ग पूर्णकर दर्शनाचार की शुद्धि के लिए लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्स अथवा चार नवकार का कायोत्सर्ग करें। • फिर कायोत्सर्ग पूर्णकर ज्ञानाचार की शुद्धि के लिए पुक्खरवरदी,