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अध्याय - 4
प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा
प्रतिक्रमण कहने को एक छोटा सा नाम है या कहें तो श्रावक की एक दैनिक क्रिया है परंतु जो लोग इसकी नित्य आराधना करते हैं वे इसकी सूक्ष्मताओं एवं विविधताओं के विषय में जानते हैं। जैसे कि सुबह का प्रतिक्रमण अलग होता है और शाम का अलग। शाम के प्रतिक्रमण में भी पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक में अंतर है। इसी के साथ विविध जैन परम्पराओं में भी अनेक प्रकार के भेद देखे जाते हैं। प्रस्तुत अध्याय में इन्हीं विधियों के अंतर आदि को स्पष्ट करने हेतु इसके तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक पक्षों पर विचार किया जा रहा है।
रात्रिक प्रतिक्रमण विधि
आवश्यकनिर्युक्ति, पंचवस्तुक, प्रवचनसारोद्धार, योगशास्त्र, तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधासामाचारी, यतिदिनचर्या, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, साधुविधिप्रकाश आदि में उल्लिखित एवं वर्तमान परम्परा में प्रचलित रात्रिक प्रतिक्रमण विधि इस प्रकार है
प्रतिक्रमण से पूर्व की विधि
•
मुनि स्थापनाचार्य अथवा गुरु के समक्ष एक खमासमण देकर गमनागमन में लगे दोषों से निवृत्त होने के लिए ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। गृहस्थ विधिवत प्रात:कालीन सामायिक ग्रहण करें।
• उसके बाद एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! कुसुमिण दुसुमिण ओहडावणियं राइय पायच्छित्त विसोहणत्थं काउस्सग्ग करूं? इच्छं' कुसुमिण दुसुमिण राइय पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक अन्नत्यसूत्र कहकर चार लोगस्स (सागरवरगंभीरा तक)