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________________ 96... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना तृतीय वन्दन आवश्यक- लोगस्ससूत्र के पश्चात मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर दो बार वन्दन किया जाता है यह तीसरा आवश्यक है। इस आवश्यक के माध्यम से ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि गुण रत्नों के भंडार गुरु को वंदन होता है जिससे स्वयं के ज्ञान आदि गुणों की शुद्धि होती है। आशातनाओं की क्षमा मांगने पूर्वक वंदन करने से अहंकार आदि कषायों का नाश और चित्तवृत्ति शुभ होती है। ___चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक- गुरु को वंदन करने के पश्चात दैवसिक आलोचना के पाठ से लेकर आयरिय उवज्झाय सूत्र तक चौथा आवश्यक है। पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक प्रतिक्रमण चौथे आवश्यक में समाविष्ट होते हैं। इस आवश्यक के द्वारा आत्मा के मूलगुणों एवं उत्तर गुणों में हुई स्खलनाओं की विधिपूर्वक निंदा, गर्दा और प्रायश्चित्त होता है, जिससे मूलउत्तर गुणों की शुद्धि होती है। मिथ्यात्व की ओर प्रेरित करने सम्बन्धी पापानुबन्ध का नाश होता है जिससे सम्यग्दर्शन और सर्वविरति के भाव दृढ़ बनते हैं। - पंचम कायोत्सर्ग आवश्यक- आयरिय उवज्झाय सूत्र के पश्चात क्रमश: दो, एक, एक लोगस्स का कायोत्सर्ग किया जाता है। इसी के साथ एक-एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण भी करते हैं यह पांचवाँ आवश्यक है। ___ इस पाँचवें कायोत्सर्ग के द्वारा चारित्राचार की विशेष शुद्धि होती है। कायोत्सर्ग में निश्चित ध्यान और मन, वचन, काया की प्रवृत्ति का प्रतिज्ञा पूर्वक निरोध होता है जिससे कायोत्सर्ग में ज्ञान, दर्शन, चारित्र की और कुछ अंश में अयोग अवस्था की आराधना भी होती है। षष्ठम प्रत्याख्यान आवश्यक- कायोत्सर्ग आवश्यक के पश्चात प्रत्याख्यान आवश्यक किया जाता है, परन्तु दैवसिक प्रतिक्रमण में उस समय प्रत्याख्यान का समय बीत गया होने से प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में ही प्रत्याख्यान कर लेते हैं। इसलिए इस समय छठे आवश्यक के निमित्त मुखवस्त्रिका का पडिलेहण कर 'वन्दन पूर्वक प्रत्याख्यान किया है' ऐसा गुरु को ज्ञापित किया जाता है। प्रत्याख्यान गुणों का आधार रूप है इस कारण छठे आवश्यक से तपाचार की शुद्धि होती है। उपवास आदि तपों का संकल्प होने से तप धर्म और विरति धर्म की साधना होती है। छहों आवश्यक से वीर्याचार की शुद्धि होती है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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