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94... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
क्षेत्रदेवता स्तुति- इसमें क्षेत्र अधिष्ठायक देवों से चतुर्विध संघ की रक्षा करने का अनुरोध किया गया है। यह प्राचीन सामाचारी से उद्धृत स्तुति आचार दिनकर में मिलती है। . भवनदेवता स्तुति- इस स्तुति में भवन में रहने वाले चारों जाति के देवों से दूरितों का नाश एवं अक्षत सुख देने की प्रार्थना की गई है।
पाक्षिक अतिचार- इस सूत्र के द्वारा श्रावक के सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत एवं पंचाचार सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना की जाती है। ___ वैयावच्चगराणं सूत्र- इस सूत्र के द्वारा वैयावृत्य करने वाले, उपद्रव शान्त करने वाले, समाधि प्राप्त करवाने वाले सम्यग्दृष्टियों की आराधना निमित्त कायोत्सर्ग करने की भावना व्यक्त की जाती है। ___ अजितशान्तिस्तव- इस स्तव में अजितनाथ एवं शान्तिनाथ भगवान की स्तुति की गई है।
इसकी रचना 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के गणधर नंदिषेण मुनि ने की है।
बृहद्शान्ति- इस स्तव में शांति, तुष्टि और पुष्टि करने वाले तीर्थंकरों, यक्ष-यक्षिणियों, विद्यादेवियों, नवग्रहों आदि का नामोल्लेख किया गया है। इसके रचयिता वादिवेताल शांतिसूरि है। कुछ प्रतियों में इसके बृहच्छान्तिपर्वस्तव, बृहच्छान्ति-स्तोत्र, वृद्ध-शांतिस्तव नाम भी प्राप्त होते हैं। यह सूत्र जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा, रथयात्रा और स्नात्र पूजा के अन्त में बोला जाता है, ऐसा उल्लेख इसी पाठ में है। यह पाठ मंगल वृद्धि की कामना से पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की समाप्ति पर भी बोला जाता है।
निष्कर्षत: प्रतिक्रमण एक शाश्वत क्रिया है जिसमें प्रयुक्त कुछ सूत्र अनादि शाश्वत हैं, कुछ गणधर रचित तो कुछ पूर्वाचार्यों की कृति हैं। इन सूत्रों के शब्दों की रचना ही इसकी एक विशिष्टता है। पूर्वाचार्यों ने छोटे-छोटे सूत्रों में अपने विशद ज्ञान को समाहित कर दिया है अत: सूत्रों के अर्थ एवं भावों को ध्यान में रखते हुए इन सूत्रों का पठन और श्रवण करना चाहिए। प्रातःकालीन प्रतिक्रमण में छह आवश्यक कहाँ से कहाँ तक?
प्रथम सामायिक आवश्यक- सामायिक विधि, प्रारम्भिक चैत्यवंदन, धम्मोमंगल, भरहेसर सज्झाय अथवा तीन नमस्कार मन्त्र रूप सज्झाय,