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________________ प्रतिक्रमण सूत्रों का प्रयोग कब और कैसे? ...93 ने शाकम्भरी नगरी में शाकिनी देवी द्वारा किये गये महामारी जैसे भयंकर उपद्रव को मिटाने हेतु की थी। सकलार्हत् स्तोत्र- इस चैत्यवंदन सूत्र में चौबीस तीर्थंकरों की अलगअलग स्तुतियाँ की गई है। यह सूत्र आचार्य हेमचन्द्र (12वीं शती) द्वारा रचित है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का प्रारम्भ इसी सूत्र के श्लोकों से किया गया है। - जयतिहुअण सूत्र- इस सूत्र में पार्श्वनाथ भगवान के नाम स्मरण की महिमा एवं उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन है। यह सूत्र नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि (11-12वीं शती) द्वारा रचित है। इस स्तोत्र की रचना करते हए स्तंभन पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हई थी, जो आज भी खंभात में विराजमान है। इसके 32 श्लोकों में से दो महाप्रभावी गाथाओं को लुप्त कर दिया गया है। श्री सेढ़ी सूत्र- इस चैत्यवंदन सूत्र में पार्श्वनाथ प्रभु का गुणगान है। इसके रचयिता भी आचार्य अभयदेवसूरि हैं। इस सूत्र के स्मरण पूर्वक स्तंभन पार्श्वनाथ का किये गए अभिषेक जल से उनकी शारीरिक पीड़ा शान्त हुई थी। सकलतीर्थ वंदना- इस स्तोत्र के नामानुरूप इसमें शाश्वत-अशाश्वत सभी चैत्यों, तीर्थों, सिद्ध भगवन्तों एवं साधुओं को वंदना की गई है। इसकी रचना प्राचीन गाथाओं के आधार पर मुनि जीवविजयजी (18वीं शती) ने की है। यह स्तोत्र तपागच्छ आदि कुछ परम्पराओं में रात्रिक प्रतिक्रमण के समय बोला जाता है। सद्भक्त्या सूत्र- इस सूत्र के द्वारा तीन लोकों के समस्त शाश्वतअशाश्वत जिन प्रतिमाओं एवं तीर्थों को वंदन किया जाता है। खरतरगच्छ परम्परा में प्राभातिक प्रतिक्रमण के दौरान सकलतीर्थ वंदना के रूप में यही सूत्र बोला जाता है। श्रुतदेवता स्तुति- (कमलदल)- इसमें श्रुतदेवी के अलौकिक स्वरूप की स्तुति की गई है। इसकी रचना मल्लवादी (5वीं शती) ने की है। ___(सुवर्ण शालिनी)- इसमें श्रुतदेवी के अध्यात्म स्वरूप को बताते हुए उनसे श्रुतदान की प्रार्थना की गई है। इस स्तुति का उल्लेख प्राचीन सामाचारी में मिलता है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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