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92... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
आलोचना पाठ आवश्यकसूत्र के चौथे अध्ययन में प्राप्त होता है।
वंदित्तु सूत्र- इस सूत्र के माध्यम से गृहस्थ के 12 व्रतों में लगने वाले 124 अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है। यह सूत्र विक्रम की 10वीं शती के परवर्ती ग्रन्थों में प्राप्त होता है।
आयरिय उवज्झाय सूत्र- इस सूत्र के द्वारा आचार्य, उपाध्याय, संघ एवं समस्त जीवराशि से क्षमायाचना की जाती है। प्रबोध टीकानसार इस सत्र की प्रथम दो गाथा आवश्यकचूर्णि एवं तीनों गाथाएँ आवश्यक हारिभद्रीय टीका में प्राप्त होती है।
नमोऽस्तु वर्धमानाय स्तुति- इसमें चरम तीर्थंकर भगवान महावीर की स्तुति की गई है। यह स्तुति छह आवश्यक रूप प्रतिक्रमण के पूर्ण होने पर हर्ष अभिव्यक्ति के निमित्त बोली जाती है। इस स्तुति पाठ को पूर्वो से उद्धृत किया गया मानते हैं तथा यह 13वीं शती की तिलकाचार्य सामाचारी में प्राप्त होती है।
विशाललोचनदलं स्तुति- इसमें भगवान महावीर की विशेष उपमाओं द्वारा स्तुति की गई है। यह सूत्र पूर्वो से उद्धृत एवं परम्परागत माना जाता है। यह स्तुति प्रभातकालीन छह आवश्यक रूप प्रतिक्रमण के पूर्ण होने पर प्रसन्नता की अभिव्यक्ति के लिए बोली जाती है।
अड्डाइज्जेसु सूत्र- इस सूत्र के द्वारा ढाई द्वीप में विराजित सर्व साधसाध्वियों को वंदन किया जाता है। इस सूत्र का उल्लेख आवश्यक सूत्र के चौथे अध्ययन में श्रमणसूत्र के एक विभाग रूप में प्राप्त होता है।
चउक्कसाय सूत्र- इस सूत्र में पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति करते हुए उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। यह पार्श्वनाथ प्रभु का अति प्राचीन सूत्र माना जाता है।
मन्नह जिणाणं सज्झाय- इस पाठ में श्रावक-श्राविकाओं के करने योग्य छत्तीस कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता लगभग विक्रम की 13वीं शती के आचार्य महेन्द्रसूरि हैं।
लघु शान्ति- इस स्तव में मन्त्र गर्भित पदों के द्वारा शान्तिनाथ भगवान की स्तुति एवं उनके नाम स्मरण मात्र से अभिमन्त्रित जल का छिड़काव करने पर महामारी जैसे उपद्रवों की शान्ति हो जाती है तत्सम्बन्धी वर्णन किया गया है। साथ ही अधिष्ठायिका देवियों के रूप में विजया,पद्मा, जया और अपराजिता का नामोल्लेख है। इस स्तोत्र की रचना वीर निर्वाण की 7वीं शती के मानदेवसूरि