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प्रतिक्रमण सूत्रों का प्रयोग कब और कैसे? ...89
इरियावहि सूत्र - इस सूत्र के द्वारा गमनागमन सम्बन्धी क्रियाओं में 563 प्रकार के किसी भी जीवों की विराधना या हिंसा हुई हो तो उस पाप से निवृत्त होने के लिए 1824120 प्रकार से मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है।
यह पाठ आवश्यक सूत्र के चौथे अध्ययन में प्राप्त होता है, अतः यह गणधर रचित है।
तस्स उत्तरी सूत्र - इस सूत्र के द्वारा पाप कर्मों का प्रायश्चित्त करने के लिए, उसकी विशुद्धि करने के लिए, उन कर्मों से आत्मा को शल्य रहित करने के लिए और उनका नाश करने के लिए कायोत्सर्ग करने का संकल्प किया जाता है। इस सूत्र का उल्लेख आवश्यकसूत्र के पाँचवें कायोत्सर्ग अध्ययन में है।
अन्नत्थ सूत्र - इस सूत्र के द्वारा कायोत्सर्ग के समय अनैच्छिक (स्वाभाविक) रूप से होने वाली छींक, खांसी, जंभाई आदि शारीरिक क्रियाओं का आगार (छूट) रखा जाता है।
गणधर रचित यह सूत्र आवश्यक नामक आगम के पाँचवें अध्ययन में मिलता है।
लोगस्स सूत्र- इस सूत्र में चौबीस तीर्थंकरों को नाम स्मरण पूर्वक उनके वंदन किया गया है और उनसे आरोग्य बोधि एवं समाधि प्राप्ति हेतु प्रार्थना की गई है। इस सूत्र को गणधरकृत माना जाता है तथा महानिशीथ, आवश्यक, उत्तराध्ययन आदि कई सूत्रों में इसका उल्लेख मिलता है।
करेमि भंते सूत्र - इस सूत्र के द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए दो करण एवं तीन योग से सावद्य कार्यों का परित्याग किया जाता है। यह सूत्र गणधर रचित और शाश्वत माना जाता है।
सामाइयवयजुत्तो सूत्र - इस सूत्र के द्वारा सामायिक के दौरान ज्ञातअज्ञात में लगे हुए दोषों का चिंतन कर उनकी निंदा की जाती है।
इस सूत्र की दूसरी गाथा विक्रम की 15वीं शती के आवश्यक निर्युक्ति में एवं पहली गाथा आचार दिनकर में प्राप्त होती है।
भयवं दसण्णभद्दो सूत्र - इस सूत्र में सामायिक व्रत एवं सामायिक कर्त्ता साधु एवं श्रावकों की महिमा बताते हुए सामायिक में लगे दोषों की आलोचना की गई है। इस सूत्र का प्रथम उल्लेख 14वीं शती के विधिमार्गप्रपा में मिलता है। जगचिंतामणि सूत्र - इस चैत्यवंदन सूत्र में तीर्थंकरों का गुणगान करते हुए उनके चैत्य एवं प्रतिमाओं को वंदन किया गया है। इसी के साथ शाश्वत