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88... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
5. ज्ञानाचार, दर्शनाचार एवं चारित्राचार की विशुद्धि निमित्त एक, दो, चार
आदि लोगस्ससूत्र का चिन्तन करना, कायोत्सर्ग आवश्यक है। 6. प्रात:काल में नवकारसी आदि के, दिन के दूसरे भाग में गंठसी, मुट्ठसी ____ आदि के तथा सन्ध्या में चौविहार, तिविहार आदि के प्रत्याख्यान करना,
प्रत्याख्यान आवश्यक है। प्रतिक्रमण सूत्रों का संक्षिप्त अर्थ एवं उनकी प्राचीनता
नमस्कार महामन्त्र- इस महामंत्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधू इन पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। इस मन्त्र को महामंगलकारी एवं पापों का नाश करने वाला कहा गया है। यह सूत्र गणधर द्वारा रचित है और इसे शाश्वत सूत्र माना जाता है।
पंचिंदिय सूत्र- इस सूत्र में आचार्य के 36 गुणों का वर्णन किया गया है। इस सूत्र के द्वारा परोक्ष आचार्य की साक्षी रूप में स्थापना की जाती है इसे भाव स्थापना कह सकते हैं। इसीलिए इसका दूसरा नाम गुरुस्थापना सूत्र है। प्रबोध टीका में यह सूत्र गणधर रचित कहा गया है अतः प्राचीन है।
खमासमण सूत्र- इस सूत्र के द्वारा शरीर के पाँचों अंगों को झुकाकर देव-गुरु को वंदन किया जाता है इसलिए इसे पंचांग प्रणिपात कहते हैं। इसके द्वारा क्षमाश्रमणों (साधु-साध्वियों) को वंदन किए जाने से इसे खमासमण सूत्र तथा यह सूत्र सामान्य वंदन में उपयोगी होने से इसे थोभवंदन सूत्र कहा जाता है।
प्रबोध टीकानुसार यह सूत्र गणधरकृत है तथा इसका सर्वप्रथम उल्लेख ओघनियुक्ति टीका में प्राप्त होता है।
सुखपृच्छा सूत्र- इस सूत्र के द्वारा साधु-साध्वी के तप, संयम एवं शरीर सम्बन्धी सुखपृच्छा की जाती है और आहार आदि से लाभान्वित होने हेत् निमंत्रण दिया जाता है। प्रबोध टीका के अनुसार यह सूत्र भी गणधर रचित माना जाता है। इसका उल्लेख सर्वप्रथम भगवतीसूत्र में गुरु निमंत्रण के रूप में किया गया है। ___ अन्भुट्टिओमि सूत्र- इस सूत्र के माध्यम से हमारे द्वारा गुरु के साथ हुई छोटी-बड़ी अविनय आदि आशातनाओं की क्षमायाचना की जाती है अत: इसे क्षमापना सूत्र कहते हैं। गुरु के समक्ष क्षमापना हेतु उपस्थित होने के कारण इसे अब्भुट्ठिओमि सूत्र भी कहते हैं। प्रबोध टीकानुसार इस सूत्र का उल्लेख आवश्यक सूत्र के पाँचवें अध्ययन में प्राप्त होता है। अत: यह प्राचीन सूत्र है।