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प्रतिक्रमण सूत्रों का प्रयोग कब और कैसे? 87
4. बृहद् अतिचार, श्रमणसूत्र, वंदित्तुसूत्र आदि
5. 12,20 या 40 लोगस्स के कायोत्सर्ग के पूर्व कहे जाने वाला
प्रतिक्रमण आवश्यक
कायोत्सर्ग आवश्यक
प्रत्याख्यान आवश्यक
अन्नत्थ सूत्र 6. पाक्षिकसूत्र
पाक्षिक आदि प्रतिक्रमणों में पंचाचार कैसे?
1. ज्ञानी, गुणी एवं संबुद्ध मुनियों से क्षमायाचना करना ज्ञानाचार का पालन है।
2. कायोत्सर्ग करते समय एवं प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलना दर्शनाचार का पालन है।
3. अतिचार पाठ, पाक्षिक सूत्र, श्रमण सूत्र, वंदित्तु सूत्र, `प्रत्येक खामणा सूत्र, समाप्ति खामणा सूत्र आदि बोलना चारित्राचार का पालन है। 4. प्रतिक्रमण में शरीर को हिलाना नहीं, सूत्रों को मनोयोग पूर्वक धारण करना, 12 लोगस्स का कायोत्सर्ग करना तपाचार का पालन है।
5. प्रतिक्रमण को यथोक्त विधिपूर्वक करना, क्रियाओं में अप्रमत्त भाव रखना आदि वीर्याचार का पालन है।
दैनिक जीवनचर्या में छह आवश्यक किस तरह?
दैवसिक आदि प्रतिक्रमण से तो छह आवश्यक का पालन होता ही है, किन्तु दैनिक जीवन में भी इसका अनुपालन किया जा सकता है वह इस प्रकार है
1. दिन में एक, दो या तीन सामायिक करना, प्रथम सामायिक आवश्यक है। 2. दिन में सात बार चैत्यवन्दन करना, जिन पूजा, स्नात्र पूजा आदि करना, चतुर्विंशति आवश्यक है।
3. प्रात:काल प्रत्याख्यान ग्रहण करने से पूर्व, प्रवचन सुनने से पूर्व, सामायिक लेने से पूर्व, सन्ध्याकालीन प्रत्याख्यान से पूर्व द्वादशावर्त्त वन्दन करना, इसी तरह त्रिकाल वन्दना करना, वन्दन आवश्यक है। 4. दिनकृत या पूर्वकृत दोषों का बार-बार पश्चात्ताप करना, मिच्छामि दुक्कडं देना, गमनागमन क्रिया का प्रतिक्रमण करना, उभय सन्ध्याओं में षडावश्यक का पालन करना, प्रतिक्रमण आवश्यक है।