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90... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
प्रतिमाएँ और शाश्वत तीर्थों की संख्या बताई गई है। यह सूत्र प्रभाती चैत्यवंदन के रूप में सर्वप्रथम 14वीं शती के तरूणप्रभसूरिकृत षडावश्यक बालावबोध में प्राप्त होता है। गणधर गौतम स्वामी ने अष्टापद पर्वत पर इसी सूत्र से चैत्यवंदन किया था, ऐसा उल्लेख है।
जयउसामिय सूत्र - इस सूत्र में उत्कृष्ट 170 जिन, उत्कृष्ट केवलज्ञानियों साधु-साध्वियों, शाश्वत प्रतिमाओं एवं शाश्वत बिम्बों की संख्या बताते हुए उन्हें वंदन किया गया है।
खरतरगच्छ परम्परा में प्रातः काल प्रतिक्रमण करते समय चैत्यवंदन के रूप में यही पाठ बोला जाता है।
जं किंचि सूत्र - इस सूत्र के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में रहे हुए जिन बिम्बों को वंदन किया जाता है।
नमुत्थुणं सूत्र - इस सूत्र में अरिहंत परमात्मा को अनेक विशेषणों से उपमित करते हुए तीनों काल में होने वाले तीर्थंकरों की स्तुति और उन्हें वंदन किया गया है। यह सूत्र शक्रेन्द्र द्वारा रचित है अतः इसे शक्रस्तव भी कहा जाता है। इसमें अरिहंत परमात्मा को विशिष्ट रूप से प्रणिपात (वंदन) किये जाने के कारण इसका दूसरा नाम प्रणिपात दण्डक है। यह प्राचीन एवं शाश्वत सूत्र है। जावंति चेइआई सूत्र - इस सूत्र में तीनों लोकों के समस्त चैत्यों को वंदन किया गया है।
जावंत केविसाहू सूत्र - इस सूत्र में भरत, ऐरावत एवं महाविदेह इन तीन क्षेत्रों में रहे हुए सभी साधु-साध्वियों को वंदन किया गया है। उक्त दोनों पाठ वंदित्तुसूत्र पर आधारित है ।
नमोऽर्हत् सूत्र - इस सूत्र में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। यह नवकार मन्त्र का संक्षिप्त रूप है तथा 5वीं शती में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने इसकी रचना की है। इसका प्रथम उल्लेख विधिमार्गप्रपा में मिलता है।
उवसग्गहरं स्तोत्र - इस सूत्र में भगवान पार्श्वनाथ की अनेक विशेषणों स्तुति करते हुए उनके नाम सुमिरण की महिमा बताई गई है। यह स्तोत्र ईसा पूर्व चौथी शती में चौदह पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी द्वारा मरकी रोग निवारण हेतु रचा गया था। यह पाठ मूल रूप से सत्ताईस गाथाओं में गुम्फित है। उत्कृष्ट प्रभाव के कारण शेष गाथाओं को प्रक्षिप्त कर दिया गया है।