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________________ प्रतिक्रमण सूत्रों का प्रयोग कब और कैसे? ...85 मुखवस्त्रिका रखते हुए स्तुति बोलता है और शेष प्राय: कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित होकर सुनते हैं। इस मुद्रा से अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ क्रियाशील और चेहरा तेजस्वी बनता है तथा आत्मबल में वृद्धि एवं मन की कलुषिताएँ दूर होती है। ___14. सुगुरुवन्दन सूत्र- यह सूत्र उत्कटासन (यथाजात) मुद्रा में बोला जाता है। यहाँ यथाजात का अभिप्राय जिस मुद्रा में बालक जन्मता है उस तरह की मुद्रा करने से है। यथाजात मुद्रा में वन्दनार्थी शिष्य सर्वथा नग्न तो नहीं होता, परन्तु चोलपट्ट, रजोहरण और मुखवस्त्रिका के अतिरिक्त अन्य कोई उपकरण अपने पास नहीं रखता है तथा दोनों हाथों को मस्तक से लगाकर वन्दन करने की मुद्रा में गुरु के समक्ष खड़ा रहता है। प्राचीन काल में इसी मुद्रा में मुनि दीक्षा दी जाती थी। इस मुद्रा से हाथों की कलाईयाँ और पैरों के पंजे मजबूत बनते हैं, पैर के सभी जोड़ों और स्नायुओं का उचित व्यायाम होता है, प्राण सुषुम्ना में संचरित होने लगता है तथा कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है। इससे मलावरोध, उदर रोग, चर्मरोग, अजीर्ण, संधिवात आदि रोग नष्ट होते हैं। शरीर फूल की तरह हल्का हो जाता है। गुरु को विधियुक्त वंदन करने के लिए शरीर की निरोगता एवं हल्कापन आवश्यक है, जो प्रस्तुत मुद्रा से सहज संभव होता है। 15. इच्छामिठामि सूत्र- यह सूत्र किंचित विनम्र मुद्रा अथवा स्वदोष स्वीकृत करने की मुद्रा में बोला जाता है। क्योंकि इस सूत्र के द्वारा बारह व्रत आदि में लगे दोषों का स्मरण पूर्वक मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। इस मुद्रा से मन शांत और तनाव दूर होते हैं तथा पीयूष ग्रंथि के सुचारू संचालन से आन्तरिक अनुभूतियाँ प्राप्त होती है। जिसके फलस्वरूप पापों की सम्यक आलोचना करने में सहयोग मिलता है। ___16. वंदितु सूत्र- यह पाठ वीरासन या वीर मुद्रा में बोलते हैं क्योंकि इस सूत्र के द्वारा बारह व्रत आदि में लगे दोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है, उसके लिए अन्तस् से शूरवीरता और साहस का होना जरूरी है। इस मुद्रा से वीरत्व के भाव स्वयं प्रकट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस आसन में बैठने से वीर्यनाड़ी पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, जिस कारण मधुप्रमेह जैसे विकार दूर होते हैं। इससे श्वास नियन्त्रण की शक्ति पैदा होती है, हकलाना-तुतलाना आदि वाणी सम्बन्धी रोग दूर होते हैं तथा जीवन शक्ति में वृद्धि होती है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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